अणु यानी सूक्ष्मतम कण पर असीम असाधारण शक्ति ।आचार्य तुलसी के उर्वर मस्तिष्क में उठी एक कल्पना कैसे लघु व्रतों से जीवन सँवारना ,आया विद्युत तरंग सा एक रचनात्मक सपना। लघु में विशाल का गहन चिन्तन किया ।
सकारात्मक सोच का स्पंदन व अणुव्रतों का अवतरण हुआ । यह राष्ट्रव्यापी नैतिकता का आंदोलन बना जिससे हर वर्ग का सात समुद्र पार का भी जनजीवन जन-जन लाभान्वित हुआ । अणु छोटा व्रत बड़ा दोनों का महत्व है । एक – एक बूँद पानी की तरह जीवन का आधार संकल्पित और अणुव्रत चेतना जीवन का शृंगार होती हैं ।
छोटे छोटे नियमों की आचार-संहिता निर्मल गंगा की तरह होती है जो अभावग्रस्त व्यक्ति को तार देती है। गुरु तुलसी का महान अवदान अणुव्रत जीने की कला है। इसके छोटे-छोटे संकल्प यह बताते है की व्यक्ति निर्विकार तथा निर्दोष जीवन कैसे जीएँ।
शास्त्रों में हम पाते है की जीने की चाह राग है मरने की चाह द्वेष। दोनो ही परीहेय है बशर्तें संयम के साथ हो । अणुव्रत -आंदोलन का घोष है- संयम: खलु जीवनम्-संयम ही जीवन है ।
व्यक्ति सम्पूर्ण रूप से असंयम से बचे,इससे बढ़कर उसके सौभाग्य की क्या बात होगी। गुरु तुलसी के महान अवदान अणुव्रत सत्यनिष्ठा और सदाचरण के पथ पर हम आगे बढ़े और जन-जन संयम और आत्मनुशासन की दिशा में प्रस्थान करे। यही गुरु तुलसी का स्वप्न था ।
अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम धर्म – प्रतिबिम्ब हैं । जो गुरुदेव तुलसी की नजर पाकर आज ये नियम अणुव्रत आन्दोलन के रुप में निखर गये हैं । इसीलिए हम कह सकते हैं कि अणुव्रत सुसंस्कार की ऐसी घुट्टी हैं जो हमारे जीवन में नैतिकता की आधारशिला रखती हैं ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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