एक घटना प्रसंग दिवंगत शासन श्री मुनि श्री पृथ्वीराजजी स्वामी ( श्रीडुंगरगढ़ ) मुझे बात के प्रसंग में बोलते थे कि जीवन में अपनों के लिए झुकना पड़े तो सबसे पहले प्रदीप तेरा नाम हो उसमे क्योंकि रिश्ते अहं से नहीं प्यार , अपनापन , सम्मान आदि से बनते है ।
सचमुच मुनि श्री की यह प्रेरणा जीवन में कितना आह्लाद पैदा करती है । इस धरती पर इंसान ईश्वर की बहुत ही सुन्दर देन है। हमारे चारों और सुन्दर वातावरण है।
ईश्वर ने हमें स्वस्थ्य मष्तिष्क दिया है। अब हम अपने आप को अपनी शक्ति को कैसा देखते हैं अपने चारों और के वातावरण को कैसा महसूस करते हैं और दिमाग में किन विचारों को ग्रहण करते हैं, यह सब तो अपने आप पर ही निर्भर करेगा।
सकारात्मक सोच का संबंध सिर्फ हमारें करियर से ही नहीं है यह हमारें परिवारिक और सामाजिक जीवन से भी जुड़ी है।
नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति अपने आसपास एक ऐसा नकारात्मक माहौल बना लेते हैं, जो उनके साथ-साथ उनके आसपास के लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डालता है।
कभी गौर करें कि जब हम अपनें जीवन के प्रति सकारात्मक बातें करते हैं तो बहुत से लोग हमारी और आकर्षित होते हैं वहीं अगर हम हर समय जीवन के नकारात्मक पहलुओं को ही कुरेदते रहते हैं तो हर कोई हमारें साथ से बचना ही चाहता है।
अतः जीवन से जुड़ी अपेक्षाएं पूरी न होने पर निराशा स्वाभाविक है लेकिन अगर हम उस निराशा के अंधेरे में ही डूबे रहेंगे तो आशा की दूसरी किरणों को पहचान भी नहीं पाएंगे।
जरूरत है ऐसे में मन को संयत करने की और सही से सकारात्मकता से भरने की। रचनात्मकता से सोचने की,कि अपनों के लिए झुकना कोई बड़ी बात नहीं है । पूर्णिमा को चमकने वाला चाँद भी अमावस्या को ढलता ही है ।
इस तरहअपनों के लिए झुक कर ऐसा करने से मन को खुशी मिलती है और खुशी से सन्तुष्टि मिलती है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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