हमाराजै सा चिन्तन होगा वैसे ही हमारा मन होगा । आदमी का स्वभाव अच्छा या बुरा होता है वह उसी के अनुसार अपनी समस्त शक्तियों को लगा देता है और उसमें सफल होता है । जैसा उसका स्वभाव है, वह वैसा ही बनता जाता है ।
कवि, लेखक, वक्ता, वकील, डॉक्टर, इंजीनियर आदि बनने की ओर अपनी क्रियाओं को अपने स्वभाव को उसी दिशा में मोड़ देता है और अपनी सारी शक्तियों को एकाग्र करके उसमें लगा देता है, परिणाम स्वरूप वह वही बन जाता है ।
हमको अगर जीवन में कोई भी क्षेत्र में प्रगति करनी है तो मन में अभाव खटकना चाहिए क्योंकि तभी जीवन में हमारी उस दिशा में उन्नति करने की नयी दिशाएँ खुलेगी और इंसान उस दिशा में सार्थक प्रयास भी करेगा।
जैसे—अग्नि चाहे दीपक की हो, चिराग की हो अथवा मोमबत्ती की लौ हो, इसके दो ही कार्य है जलना और प्रकाश करना। यही लौ मनुष्य के शरीर को शांत भी कर देती है, यही लौ अन्धकार को दूर कर सम्पूर्ण जगत को प्रकाशमय कर देती है।
इसमें चिन्तन की बात यह है कि उपयोग करने के ऊपर निर्भर है वो उसी वस्तु से पुण्यार्जन कर सकता है तो थोड़ी चुक होने पर पापार्जन भी कर सकता है। मानव का स्वभाव भी ठीक उसी प्रकार से है जो विवेक, चिन्तन और शुभ आचरण से सुंदर हो सकता है।
हमारे मन में ही तो घटना के मूल का जन्म होता है यानि हम क्या सोचते हैं, हमारे मस्तिष्क में कैसे विचार आते हैं वही जीवनचार्य में परिवर्तित होते हैं। अतः यह हम पर है
कि हम सकारात्मक सोचें कि नकारात्मक आदि – आदि । वह हमारा जीवन का निर्माण उसी अनुसार भरसक होगा ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
यह भी पढ़ें :