आज के समय में कहते है कि पैसा होने से ही आदमी धनवान हो जाता है । मैंने अपने जीवन में देखा व अनुभव किया है कि पैसा घर में है लेकिन घर के अन्दर आने वाले रास्ते पर ही आदमी बल्ब नहीं जलाता है क्योंकि बल्ब जलाने से बिजली का बिल आ जायेगा ।
इसलिये कहते है कि पैसा होने से ही आदमी धनवान नहीं होता बल्कि मानव अपने गुणों से महान होता है । तन की स्वच्छता मन की शुद्धि के बिना अधूरी है।
जब तक हमारे विचार निर्विकार नहीं होंगे , कषायों की मलिनता हमारे अंदर से नही जाएगी उसके लिए हमें सतत प्रयत्न जागरूक रहकर करना होता है, उसमें कंसिस्टेंसी जरूरी है, हमारे कषाय इससे उपशान्त होते होते धीरे धीरे मिटते है।
साथ मे निर्वाचार होने की साधना कोभी साधना होता है । तब सब स्वस्थ हो जाता है और आत्मा भी निर्मल होती जाती है,तन और मन के साथ।
यह कोई नहीं बता सकता कि उसकि आख़िरी साँस कौन सी होगी। हर व्यक्ति यही सोचता है कि अभी मेरे जाने का समय आया नहीं।
यह मिथ्या है।वर्तमान समय भौतिक्ता वाला है। इस चकाचौंध दुनियाँ में दौलत के पीछे इंसान इस क़दर पागल हो गया कि वो धन प्राप्त करने के चक्कर में अपना सुख-चैन खो रहा है।
ना जीवन में शांति है,ना पर्याप्त नींद है, ना परिवार के लिये समय है और जिस शरीर से काम ले रहा है उसको स्वस्थ रखने के लिये भी समय नहीं है।
जीवन में असली सुख की परिभाष देखनी है तो हम्हें देखना चाहिये हमारे पूर्वजों का जीवन।उनका जीवन सादा, सरल, सच्चा और संतोषी था। बड़ा परिवार होने के बावजूद वो अपना जीवन शांति से बिताते थे।
इसलिये वास्तविक धनवान वह है जिसका व्यवहार मधुर हैं सोच अच्छी व विचार सुन्दर हैं । ये गुणरत्न होने से आदमी अपने आप स्वतः ही साधन सम्पन्न हो जाता हैं ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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