असली कमाई का नाम आते ही यह बात आती है की जिसके पास अर्थ ज्यादा है वो ही असली कमाई करने वाला है । एक दृष्टि से हम देखे तो यह कह सकते है की मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं ।
हरेक को आजीविका चलाने के लिये अर्जन करने को कुछ ना कुछ धंधा-पानी करना ही पड़ता है पर साथ में हमें यह भी सही से समझना चाहिए कि केवल अर्थ – अर्जन ही कमाई नहीं है, यह तो मात्र ऊपरी धन – वैभव का रूप हैं तब प्रश्न उठता है कि असली कमाई का स्वरूप क्या है ?
वास्तविक कमाई हमारे मीठे अनुभव, हमारे प्यार भरे रिश्तों की सौरभ , हमारे सम्मान की कमाई, हमारे प्रति दूसरों ने प्रेम की दरिया जो बहाई आदि – आदि । यह तो हुई सब भौतिक कमाई।
आध्यात्मिक कमाई तो इसमें गिनती में ही नहीं आई। संसार की कमाई यही रहने वाली है और आत्मा की कमाई हमारे साथ जाने वाली है, धन तो धूल के समान है यह जानते हुए भी आज की भौतिक चकाचौंध की दुनिया को ही जीवन की वास्तविक कमाई समझी जाती है ।
किसी भी प्रकार से कमाई करना, खाओ- पियो और एश करो वाली ज़िन्दगी जीना और गहने, कोठी आदि पर खर्च करना, घर गृहस्थी बसाकर झूठी शान में रहना, हिंसा, दिखावे आदि में लिप्त होकर अपने अनमोल जीवन को बर्बाद कर लेते हैं।
असली कमाई तो आध्यात्मिक जीवन जीने में है, तपस्या करना, त्याग करना, मन को स्थिर रखकर मर्यादा में रहना, दया करना, दान करना, धर्म- ध्यान करना, नीति पूर्वक धन कमाना आदि से सुख शांति समृद्धि आनंद तो मिलेगा ही और अच्छी गति भी मिलती है ।
व्यक्ति को अपना जीवन सफल बनाना है तो कर्म पर विश्वास करना होगा । जो कर्म योगी बनने के बजाय कर्मकांडी बनने की चेष्टा करता है वह अपने इस भ्रम जाल में रहकर ही अपने अनमोल जीवन को बर्बाद कर लेता है।
धन कमाते कमाते तो एक दिन हमारा निधन हो जाना ही है फिर भी हमारी तृष्णा पूरी नहीं होनी है परंतु धर्म करते-करते तो एक दिन हम आत्मा से परमात्मा बनने में समर्थ हो सकते हैं । अतः असली कमाई आध्यात्मिकता की ही कमाई है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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