हमारे को कोई रोग होता है तो उसका उपचार डॉक्टर के द्वारा सही दवाई बोतलों, गोलियों और इंजेक्शनों आदि के माध्यम से ही देकर किया जाता है बल्कि इससे अधिक वास्तविक प्रभावी सही औषधि हमारे खान-पान की शुद्धि , हमारे रहन-सहन के तौर तरीके , हमारे जिगरी दोस्तों की गुफ़्तगू और याराना के सलीके , ध्यान, आसन-प्राणायाम , प्रातः भ्रमण और व्यायाम आदि से होती है।
ये सभी औषधियॉं ऐसी व्यवस्था है जो तन-मन को सही से स्वस्थता प्रदान करती हैं। क्या कोई सोच सकता है ! बिन शरीर के भी कोई कार्य सम्पन्न हो जाये? वो शरीर जो सक्षम न हो या वो जिसमें शक्ति और ऊर्जा न हो या जिसमें पुरुषार्थ या संकल्प न हो या जिसने ज्ञान और दर्शन आदि न हो ? वह बेकार है ! कबाड़ है ! बेजान है। शरीर ही हर सांसारिक प्रवृति इहलौकिक और पारलौकिक सुधारने का सही माध्यम है !
शरीर वह है जिसमें प्राण शक्ति और इंद्रियाँ इसके योग में सम्मिलित है, कषाय से रंजित है, कर्मों से बंदी है इसकी स्वस्थता ही हमें अपने विकास और लक्ष्य की ओर ले जा सकती है। शरीर की निरोगता से मन की स्वस्थता , विचारों की पवित्रता सरलता , भावों में निस्पृहता , लेश्याओं की निर्मलता , ज्ञान और दर्शन की सम्यक्व्ता आदि सम्भव है।
स्वस्थ शरीर से बढ़कर न ये पैसा है , न पदार्थ सुख और संचय है ,न शौहरत न ओहदा, क्या परिवार ? क्या सुख शांति ? आरोग्य तन है तो ये सब सहज निष्पन्न है | तभी तो कहा है कि प्राकृतिक विकल्प रोग-निरोधक हैं। निरोधक साधनों पर ही जोर दिया जाए । ताकि तन-मन का पोर-पोर स्वस्थ रहे ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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