मैं अपने चिन्तन से आज के परिप्रेक्ष्य में यह देख समझ सकता हूँ कि वर्तमान में जमाना तो बदला ही पर साथ में इंसान का सोच भी बदल गया।
इस आर्थिक उन्नति के पीछे भागते हुये इंसान रिश्तों की मर्यादा भूल गया।आज अख़बार में प्रायः पढ़ने को मिलता है कि अमुक व्यक्ति ने अपने पिता की जायदाद हासिल करने आदि – आदि , बाप – बेटे के रिश्ते को तार-तार करते हुये स्वयं को जन्म देने वाले और उसकी परवरिश करने वाले माँ-बाप के साथ क्या से क्या कर दिया ।
आज के चलन के अनुसार समय को देखते हुये सामाजिक स्तर पर इंसान ने भौतिक सम्पदा ख़ूब इकट्ठा की होगी और करेंगे भी पर उनकी भावनात्मक सोच का स्थर गिरते जा रहा है।जो प्रेम-आदर अपने परिवार में बड़ों के प्रति पहले था वो आज कंहा है ?
आज के युग में इंसान का यही सोच होते जा रहा है कि बाप बड़ा ना भैया , सबसे बड़ा रुपैया । हम में से कितनों ने अपने समय का पुराना जमाना देखा है ।
उन्हें आज का यह अफसाना देखकर विश्वास ही नहीं होता हैं । पहले अतिथि का घर आना हो या पाप पुण्य का कार्य आदि सभी सही से कर लेते थे लेकिन आज तो और चिन्तन को हम छोड़कर अपनों से सोच समझ कर रूठना और नाराज होना क्योंकि यह समझ लेना कि आजकल किसी को भी मनाने का रिवाज खत्म हो गया है।
माना कि हर मानव कि आसमाँ को मुट्ठी में क़ैद करने की ख़्वाहिश होती हैं , अपनी पहचान तलाशने , अपनी पहचान क़ायम करने का अरमान , रिश्ते-नाते,घर-आँगन को सहेजने का ज़िम्मा , रस्मों-रिवाजों को निभाने की कोशिश होती रहती है आदि – आदि ।
इस तरह हर ज़िम्मेदारी आज एक मानव बखूबी निभाने की कोशिश करता हैं । अपने लिए तो हर कोई सोचता है, अपना जीवन जीताहै ।
किसी भी व्यक्ति के योगदान को मापने का दुनिया में कोई पैमाना नहीं है । मनुष्य की अच्छाई और सेवा भाव ही उसके बाद स्मरण रहती है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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