किसी तीर्थ के पहाड़ पर चढ़ना हो या पर्वतारोहण करना हो तो झुक कर व लाठी के सहारे से चढ़ने में आसानी हो जाती है वैसे ही विनय और विवेकशीलता हो तो आदमी शिखर छू लेता है ।
यही जिंदगी की पराकाष्ठा है।हमे उत्तम सोच के साथ अपना जीवन संवारना है, खुद को पढ़ अपने विचारों को और निखार जाना है ।
न बनने देना अपने दिमाग के विचारों को रदद्दी जो अखबार की तरह कौड़ी के मोल बिक जाया करती है ।
उन्हें तो ऊंचे सिंहासन पर बैठा उत्तम धर्म की भावनाओं के साथ दुनिया के कोने – कोने में पहुंचाना है इसलिये हमें अखबार नहीं खुद को अच्छी किताब बनाना है। कई लोग इतने आत्म मुग्ध होते है की उन्हें किसी और की सुध नहीं होती है ।
उन्हें लगता है कि सिर्फ वही और सिर्फ वही है और तो और तो और जो वे कहें वही सही है। अपने मुँह मियाँ मिट्ठु एक तरह से बीमारी है जो इंसान स्वयं की प्रशंसा करता है वह अपना आपा खो देता है साथ में स्वाभिमान और आत्म विश्वास भी लेकिन यदि कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर ।
मंत्र साध ले फिर इस चीज़ से परे अपनी दुनिया बहुत अलग और आनन्दमय हो जाती है। जैसे सोना अपने नाम अपनी चमक से प्रचलित है उसे कहीं भी कैसा भी कही भी मैं सोना हूं मैं सोना हूं कह के अपना प्रचार प्रसार नहीं करना होता है ।
इसलिये शिष्टता , नैतिकता , विवेक , व्यवहार में सुन्दरता , विनम्रता , अहंकार रहित प्रसिद्धि और परिवार में हो पारस्परिक विश्वास , प्रेम और प्यार आदि जीवन के आधारभूत तत्व हैं ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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