ADVERTISEMENT

बीती ताहि बिसार दे

बीती ताहि बिसार दे
ADVERTISEMENT

आज के समय की यह ज्वलन्त समस्या हैं की हम अपनी आप बीती को नहीं छोड़ पाते हैं । यह हम जानते हैं कि गया हुआ समय वापिस नहीं आता हैं ,फिर भी हम उसको नहीं छोड़ते हैं ।

माना की पुराने सुख – दुःख को हम जल्दी से नहीं भूल पाते हैं , परन्तु कितनी बार हमने देखा हैं की इससे उबरने के हमारे द्वारासकारात्मक प्रयास भी तो नहीं हो रहे हैं । सही होने देने के कार्य में सदैव विघ्न, बाधा डालना व दुःखों में ग्रसित रहना आदि सब कारण है ।

ADVERTISEMENT

वक्त वक्त की बात है की जिसे लोग कल रंग कहते थे उसे ही लोग आज दाग कहेंगे क्योंकि ये वक्त बड़ा नाजुक है ,हमें संभल कर रहना हैं तो क्यों हम अंधेरे को हटाने में समय बर्बाद करे बल्कि क्यों ना हम दीये को जलाने में अपना समय लगाये ।

इसलिए माधुर्य के नव बीज बो देने की ,बीती ताहि बिसार देने की और मनों के उजड़े नीड़ को फिर से बसा देने की कोशिश करें । सचमुच ये घाटे का सौदा दोनों स्थितियों के साथ -साथ इस जन्म का ही नहीं अगले जन्म -जन्म का घाटे का सौदा है पर इसे समझने वाले हैं कितने?आज तो स्थिति ये है कि बात -बात में लोग झूठ बोलते है।

झूठ बोलना पाप है ,इस कथन का तो जैसे कोई मायने ही नहीं है। एक कथन मुझे याद आया की एक घर में छोटा बच्चा था। फोन की घंटी बजी, बच्चे ने फोन उठाया तो सामने से आवाज़ आयी ,पापा को फोन दो। बच्चे ने मासूमियत से कहा की पापा ने अभी -अभी कहा था कि इन अंकल का फोन आये तो तुम कह देना पापा घर में नहीं हैं।

बच्चे की ये होती है मासूमियता व भोलापन । पर पिता का तो सफ़ेद झूठ पकड़ा गया। कितना शर्मिंदा उसको होना पड़ा ।हम ध्यान रखें तो व्यर्थ के या सभी तरह के झूठ से बचा जा सकता है ,एक झूठ को छिपाने के पीछे दस और झूठ बोलने पड़ते हैऔर उससे होने वाले व्यर्थ के tension से छुटकारा पाया जा सकता है।

अब भी पापा अपने को अन्तर्मन से आत्मसात कर चेतें व इससे बचे, तभी उसकी सही से सार्थकता होगी कि बीती ताहि बिसार दे ,आगे की सुधि ले।पश्चाताप है अच्छा, पर पश्चाताप के साथ करना होगा झूठ न बोलने का वादा पक्का । अत: कम बोलो, सच बोलो ,झूठ कभी भी मत बोलो,कहती है आगम वाणी ,पहले तोल के फिर बोलो।

पर झूठ कभी न बोलो। कोई भी मजबूरी आ जायें ,हमें कभी भी झूठ नहीं बोलना है। हम अपनी दिनचर्या में जागरुकता नहीं रख पाने के कारण न जाने छोटे- छोटे कितने झूठ बोल लेते हैं । जैसे कि- कोई बोले आज मेरा ये काम कर दो और मेरा काम न करने का मन हो तो हम कह देते हैं कि मैं तो आज बहुत busy हूँ ।

कभी किसी का फ़ोन आये और उससे बात करने का मन न हो तो फ़ोन उठाने वाले को कह देते हैं कि कह दो कि मैं घर में नहीं हूँ या बाथरूम में हूँ या फोन को उस नम्बर में व्यस्त मोड़ में कर देते हैं या अन्य कुछ भी ।

इस तरह अनायास ही , बिना मतलब के ही , बेवजह ही हम छोटे- छोटे झूठ ,राग – द्वेष या अन्य मजबूरी से बोलकर अपनी आत्मा को कर्मों से भारी से भारी बनाने में लगे हैं ।

कर्मों को तो हमें ही भोगना है , लक्ष्य हो हमारा मोक्ष का , ऊपर की ओर उठने का और हम जा रहे हैं नीचे की ओर ।बस अब तो हमें प्रयास करना है ऊँचे उठने का । तो आज से हम भी बीती ताहि बिसार कर अपनी आत्मा को ऊर्ध्व गति की ओर ले जाने का प्रयास करें ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

यह भी पढ़ें :

संस्कार अन्तरा -3

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *