हैदराबाद स्थित भारत की एक कंपनी ‘भारत बायोटेक’ ( Bharat Biotech ) आज कल दुनिया भर में धूम मचा रही है। ये दुनिया की कुछ चुनिंदा कंपनियों में है जो कोरोना की वैक्सीन बना रही है।
यह कंपनी नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी और इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च के साथ मिलकर कोरोनावायरस मेडिसिन बना रही है।
मालूम हो कि इसके पहले इस कंपनी ने दुनिया का सबसे सस्ता हेपेटाइटिस की वैक्सीन बनाई थी इसके अलावा दुनिया का पहला जीका वायरस के टीके की खोज भी इसी कंपनी द्वारा की गई थी।
आइए जानते हैं उनके बारे में जिन्होंने इस कंपनी की स्थापना की :-
डॉक्टर कृष्णा इल्ला जिनका जन्म तमिलनाडु के थिरुथनी में एक किसान परिवार में हुआ था और वह अपने परिवार के पहले शख्स थे जिन्होंने कृषि के माध्यम से बायोटेक्नोलॉजी की दुनिया में अपनी पहचान बनाई।
डॉक्टर कृष्णा इल्ला बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड ( Bharat Biotech ) के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर है।
उन्होंने कृषि की पढ़ाई की और शुरुआत में उनकी योजना खेती में अपना कैरियर बनाने की थी लेकिन आर्थिक दबाव के चलते एक केमिकल और फार्मास्यूटिकल कंपनी वायर से वह जुड़ गए।
वह इस कंपनी में कृषि विभाग की टीम में थे और जब उन्हें हैंगस स्कॉलरशिप मिली तो वह अमेरिका पढ़ाई करने के लिए चले गए।
उन्होंने हावर्ड विश्वविद्यालय से मास्टर्स और विस्कंसिन मैडिसन विश्वविद्यालय से पीएचडी की। इसके बाद 1955 में भारत लौट आये।
पहले उनका इरादा भारत लौटने का नहीं था, लेकिन उनकी मां की इच्छा थी कि वह भारत आए और जो भी काम करना चाहते हैं भारत में ही रह कर करें।
वह भारत में हेपेटाइटिस बी की वैक्सीन की मांग को देखते हुए एक सस्ती हेपिटाइटिस वैक्सीन बनाने की व्यवसायिक योजना के साथ अमेरिका से भारत वापस आ आये थे।
उस समय उनके पास जितने भी चिकित्सा उपकरण थे उसके साथ उन्होंने हैदराबाद में एक छोटी सी लैब स्थापित की और यही बाद में बायोटेक कंपनी बन गई।
यह उस वक्त हुआ जब उन्हें 12.5 करोड रुपए के प्रोजेक्ट के साथ हेपिटाइटिस का टीका एक डॉलर की दर से बनाना था जबकि अन्य कंपनियां हेपेटाइटिस का टीका 35 से 40 डॉलर में बना रही थी।
सुरुआत पहले तो उन्हें फंड नहीं मिला, तब उन्होंने आईडीबीआई बैंक ने दो करोड़ का फंड दिया और उन्होंने सस्ती हेपेटाइटिस की वैक्सीन तैयार कर ली, जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने 1999 में लांच किया था।
उनकी कंपनी ने ही राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के लिए हेपिटाइटिस की वैक्सीन की प्रति खुराक 10 रुपये की कीमत के साथ 35 मिलियन खुराक की आपूर्ति की और 65 से अधिक देशों में उन्होंने कुल 350 से 400 मिलियन खुराक की सप्लाई की है।
यहीं से दुनिया मे भारत बायोटेक की पहचान दुनिया मे बनी। अब यह कम्पनी मेडिकल की दुनिया में भारत का पहला कोरोना वायरस वैक्सीन बना रही है।
कृष्णा एला ने 1996 में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के सामने बिना प्रदूषण के बायो टेक्नोलॉजी पार्क को स्थापित करने का सुझाव दिया था और यह नॉलेज पार्क जिनोम वैली था।
इसे आंध्र प्रदेश इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रक्चर कारपोरेशन की स्वीकृति मिली और इसके लिए जमीन भी मिल गई और जीनोम पार्क के रूप में स्थापित होने वाला यह भारत का पहला बायोटेक उद्योग ने यहाँ हेपेटाइटिस की वैक्सीन बनाने का प्लांट लगाया।
डॉक्टर कृष्ण का कहना है कि ज्ञान के आधार पर उद्योग स्थापित करने में पहला दूसरा और तीसरा स्थान संयुक्त राज्य अमेरिका को है।
भारत में अकादमिक शोध को जनता की समस्याओं पर उतना महत्व नहीं दिया जाता है लेकिन यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां पर सभी को ध्यान देने की जरूरत है।
भारत बायोटेक एक ऐसी पहली कंपनी बन गई जिसमें प्रिजर्वेटिव हेपेटाइटिस की वैक्सीन बनाई। दुनिया में भारत बायोटेक सबसे सस्ती हेपेटाइटिस वैक्सीन बनाने वाली कंपनी है।
जीका वायरस का टीका भी सबसे पहले इसी कंपनी ने खोजा और इसने वैश्विक स्तर पर 3 बिलियन वैक्सीन की सप्लाई भी की।
डॉ कृष्णा को सैकड़ों राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। डॉ कृष्णा का कहना है कि जब कोई कम्पनी आम आदमी के लिए सस्ती दर पर टीका बनाते हैं तो वे अक्सर उसकी गुणवत्ता से समझौता करने लगते हैं ।
लेकिन वह विश्वास के साथ तकनीकी पहुंच आम आदमी तक पहुंचाने के लिए और सभी नागरिकों को स्वास्थ्य सेवा मिले इस उद्देश्य से सस्ती दरों पर कई सारे टीके का उत्पादन करने में उनकी कंपनी सक्षम है।
दुनिया इस समय कोरोना वायरस का टिकट बनाने में लगी हुई है और भारत की कंपनी भारत बायोटेक इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर कर रही है । भारत में इस महामारी को समाप्त करने में भारत बायोटेक के प्रयासों की महत्वपूर्ण भूमिका है।