हर इंसान के खुद के अंदर इतनी क्षमता होती है कि वह कुछ भी हासिल कर सकता है। खुद के अंदर की ताकत में इतनी शक्ति होती है कि यह बुरे वक्त में भी इंसान को उठाकर सफलता के मुकाम पर पहुंचा सकती है।
आज की कहानी एक औरत की है जिसकी उसके पति के द्वारा बेरहमी से पिटाई की गई थी। जिसकी वजह से वह अस्पताल में भर्ती भी हुई थी।
लेकिन अपने बच्चों के प्यार के सहारे जिंदगी को एक और मौका दिया। उम्मीद की एक छोटी सी किरण इस औरतों के लिए ताकत बन गई। उसने आज करोड़ों रुपए का साम्राज्य खड़ा कर दिया है और बेखौफ जिंदगी जी रही है।
हम बात कर रहे हैं महाराष्ट्र के एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी भारती सुमेरिया की। उनके परिवार में रूढ़वादी परंपरा थी इसलिए उनके पिता ने दसवीं के बाद ही उन्हें आगे पढ़ाने से इंकार कर दिया और उनकी शादी कर दी।
उनके पिता चाहते थे कि उनकी बेटी शादी करके खुशी से अपनी जिंदगी गुजारे। लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि उन्होंने अपनी बेटी के लिए जिस इंसान को चुना है वह उनके लिए एक बुरा सपना बन सकता है।
शादी के बाद जल्द ही भारती को एक बेटी हुई। उसके कुछ साल बाद भारती ने दो जुड़वा बेटे को जन्म दिया। उनके प्रति बेरोजगार थे ।
भारती के पति संजय भारती को बिना बात के ही मारा पीटा करते थे। समय बीतने के साथ उनका यह बहशीपन दिन-ब-दिन बढ़ता चला गया।
नतीजा यह हुआ कि इस तरह की घटनाएं हर रोज घटने लगी। कई बार पति के मार के चलते उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट होना पड़ता था। भारती अपनी इस नरक की जिंदगी से निकलना चाहती थी।
भारती ने इस नरक की जिंदगी से पलायन कर अपने माता-पिता के घर जाने का फैसला किया। वह जानती थी कि उन्हें वापस अपने पति के पास आना ही होगा।
इसलिए भारती का हर पल अपने पति के डर के साये में बीत रहा था। एक महीने तक तो वह घर से बाहर भी नही निकली लोगों से बिल्कुल भी मिली जुली नही।
बातचीत नहीं की। यह भारती की जिंदगी का एक ऐसा वक्त था जब वह पूरी तरह से अंधेरे में थी। उनके बच्चे उसके लिए एक आशा की किरण थे। उसके बच्चों ने हमेशा भारती का हौसला बढ़ाया और कुछ नया सीखने के लिए प्रेरित किया।
बच्चों ने भारती को लोकल कंपटीशन में भाग लेने के लिए कहा और अपने डिप्रेशन के दायरे से बाहर निकलने के लिए प्रेरित किया। भारती के भाई ने बच्चों के खातिर भारती को नौकरी करने के लिए कहा।
साल 2005 में भारतीय ने एक छोटी सी फैक्ट्री खोली जिसमें रोजाना के छोटे-छोटे सामान जैसे बॉक्स, टिफिन बॉक्स का निर्माण होता था।
भारती के पिता ने उनके आर्थिक मदद के लिए छह लाख का लोन लिया और मुलुंड में दो कर्मचारियों के साथ उन्होंने अपना बिजनेस शुरू किया था।
उस समय पैसे कमाने स्व ज्यादा भारती का काम करना जरूरी था। काम करने की वजह से भारती अपने डिप्रेशन से पूरी तरह निकल गई।
3 साल बाद भारती ने अपने बिजनेस को और आगे बढ़ाया और यूनिट खोली जिसमें प्लास्टिक के बॉल्स बनाए जाते हैं।
ग्राहकों के संतोष के लिए भारती खुद फैक्ट्री के सामानों की गुणवत्ता की जांच किया करती थी। जल्दी भारती को प्रतिष्ठा मिलने लगी और उन्हें सिपला, बिसलेरी जैसे बड़े बड़े ब्रांड से आर्डर आने लगे।
3 साल के बाद साल 2014 की बात है भारती के पति ने फिर से भारतीय पर हाथ उठाया। उस समय उनके फैक्ट्री के कर्मचारियों के सामने ही उनके पति ने मारना शुरू कर दिया था।
यह सब उनके बच्चों के बर्दास्त से बाहर हो गया और बच्चों ने अपने पिता से कहा कि वह लौट जाएं और कभी वापस लौट कर न आये।
आज भारती ने अपना बिजनेस बढ़ा चार फैक्ट्रियों में विस्तृत कर लिया है। जिनसे भारती को सालाना लगभग 4 करोड़ का टर्नओवर होता है।
भारती ने अपने बच्चों में एक उम्मीद की किरण देखी और अपनी जिंदगी के धंधे से निकलकर रोशनी का पुंज खोल दिया।
आज भारती अपने साथ अपने बच्चों का जीवन भी खुशियों से भर दिया है। भारती की कहानी से प्रेरणा लेकर हर महिला को चाहिए कि वह इस तरह के अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाए और अपने आप को आर्थिक रूप से मजबूत बने