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भय : Bhay

Bhay
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मैंने मेरे जीवन में देखा अनुभव किया है कि मानव गलत करता है या और कोई अपने कृत कर्मों आदि के कारण से भय करता है । कहते है जो सही है उनको भय नहीं होता है ।

दिवंगत शासन श्री मुनि श्री पृथ्वीराज जी स्वामी ( श्री ड़ुंगरगढ़ ) मुझे कितनी बार बोलते की प्रदीप हम साधु को कोई भय नहीं है ठीक इसी तरह तुने किसी का अहित नहीं किया है और ना ही तेरे मन में गलत करने वाले के प्रति भी गलत भाव आते है क्योंकि मुझे तेरी गहरी अनुभवी लम्बी सोच के प्रति इस बात का विश्वास है ।

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तेरे जैसे उच्च मनोबली और अच्छी सोच वाले धर्म संघ का मान बढ़ाने वाले इन्सान को भी कोई भय नहीं होता है । मैंने देखा है तुझे प्रदीप तुम सत्य को भाँप लेते हो लेकिन बोलते नहीं हो क्योंकि सत्य बोलने से वातावरण दूषित हो सकता है यह गुण हर इन्सान में नहीं होते है धन्य है प्रदीप तेरी सोच ।

खैर ! मुनिवर तो देवलोक पधार गये लेकिन उनकी शिक्षा मुझे आज भी आगे बढ़ने को प्रोत्साहित करती रहती है । मौत से ज्यादा भयभीत है दुनियां, मौत की आहट से।

वर्तमान की समस्या से अधिक चिंतित है,आने वाले कल से। कमोबेश हर प्राणी की यही कहानी है,यही हकीकत है । हम सच्चाई को आत्मसात कर सकें इसकी बङी जरूरत है।

न डर रे मन दुनिया से, यहाँ किसी के चाहने से,नहीं किसी का बुरा होता है, मिलता है वही यहाँ जो हमने बोया होता है । धरा के अंतिम छोर पर सृष्टि के प्रलय को मनुज है देख रहा ।

सब डूबे ,डूबा जीवन अंतर्मन की इस पीड़ा को मौन अकेला झेल रहा । व्यर्थ बरसने है लगा भय बनकर हलाहल दिव्य जीवन कांप रहा। पर हम वर्तमान में जीये और जिस क्षण मरना है, मर जाएँगे लेकिन आज क्यों मरे ? यह जीने की कला है |

अतः भय मुक्त रहकर अभय की साधना करे।मनुज के त्रस्त मुख से भय – आच्छादन हटने लगे नव आदित्य, नव प्रकाश बिखेरता दिखे।

भय एक मानसिक दुर्बलता है, जिसका मनोबल मजबूत होता है, उसमें भय नाम की कोई चीज नहीं होती है |

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