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भूल स्वीकार : स्वस्थ संबंधों का आधार

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भूल स्वीकार करना मानो हल्के हो जाना है । मानव की प्रकृति कही न कही भूल होने की रहती है । इसमें मेरा चिन्तन है हम मानव है हमारे से भूल होगी क्योंकि मानव गलती करके ही सिखता है ।

इसमें सबसे बड़ा मेरा मंतव्य है कि भूल को स्वीकार कर लिया हद्ध्य से मानो हल्क़े हो गये । मन को आइना बनाकर झाँक देख ले हम स्वयं को तो मन के आइने में हर ऐब हमको नज़र आ जायेगी ।

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हम उन सब ऐब को मिटा दे तो पाक और ख़ूबसूरत हो जायेगा हमारा जीवन व जीवन के हर कण – कण में अनुपम सौंदर्य निखर जायेगा । क्योंकि जग की सारी दौलत , शोहरत आदि से बढ़कर हमको ख़ज़ाना जो मिल गया है ।

भूल को स्वीकार करने का ।मानव जीवन में भूल होना स्वाभाविक है पर उसे स्वीकार करने का साहस पौरुष है। माना की उसी वक्त अपनी भूल स्वीकारना कठिन होता है क्योंकि अपनी इसे मानने में बहुत साहस की जरूरत होती है।

मगर इससे हम अपराध बोध की भावना से बच जाते है। लोगों को एक भूल छुपाने के लिए बहुत सारे झूठ बोलने पड़ते हैं लेकिन यदि स्वीकार कर ले तो क्या जरूरत।

अपने द्वारा हुई भूलों को स्वीकार करने की काबिलियत और इनसे कुछ सीखने की ललक, हमको महान इंसान बना देती है और हम अतीत को भुलाकर वर्तमान समय पर फोकस कर आगे बढ पाएँगे।

इसी तरह आपस में भी भूल को स्वीकार कर कह देना संबंधों में कहीं अधिक प्रभावी मधुर आभास देता है। अतः हम करें यों जीवन को सरल बनाने का प्रयास।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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