हम प्राय: लोग जैविक घड़ी यानी BIO-CLOCK से अनभिज्ञ हैं। हम इसे कुछ उदाहरणों से समझ सकते है मैंने मेरे जीवन में इसको बहुत अपनाया है और उसका सही से सकारात्मक परिणाम भी मुझे मिला है जैसे – जल्दी उठने के लिए हम घड़ी का अलार्म लगाते हैं पर अक्सर अलार्म बजने के पहले ही उठ जाते हैं।
यह Bio-Clock का सकारात्मक प्रभाव कि घंटी लगाई और उसका मन में जमाव हो गया और उसने अपना प्रभाव दिखा दिया ।
इसी तरह हमने मन में Set कर लिया कि हम इतनी उम्र से बेसी नहीं जिएँगे और बार-बार उसी को रटते रहेंगे तो स्वतः ही अधिकांशतः Bio-Clock उसे भी सेट कर लेगी और बड़ी बात उसका भी प्रभाव दिखा देगी ।
अतः बहुत सावधानी की दरकार है कि हम कोई गलत विचार Bio-Clock में न भरते जाएँ अन्यथा जैविक घड़ी उसका प्रभाव दिखा देगी और हमें उसका पता भी नहीं चलेगा ।
विचार उत्पन्न होते है तो विचारों की गुणवत्ता पर हम ध्यान दे कि क्या उनकी विषाक्तता का भी हमको कुछ भान हैं । आजकल तो विषाक्त विचार बड़े चाव से ओढ़ लिये जाते हैं चाहे युवा हों या प्रौढ़ क्योंकि वे मन को अधिक मीठे लगते हैं।
इसलिए चटखारे ले लेकर चखते हैं ,पर साथ में यह नहीं सोचते हैं कि FOOD POISONING से तो पेट खराब होता है जो प्रायः दवा आदि से ठीक हो सकता है , पर THOUGHT POISONING तो जीवन ही बर्बाद करके रख देता है।
क्योंकि इसका असर नशे की तरह होता है। इसलिए इसका शिकार इसे छोड़ना ही नहीं चाहता है। अतः प्रारंभ से ही हम नकारात्मक विचारों और नकारात्मक लोगों से कोसों दूर रहें , सद्साहित्य-सत्संग सद्विचार भरपूर से भरते रहें साथ में निरंतर प्रेक्षा-ध्यान का भी प्रयोग हो ।
कहते हैं चीन जापान आदि देशों में लंबी उम्र का राज है उनकी मानसिकता में वही सोच भरी होती है जो उसी अनुसार अपना प्रभाव दिखाती है। इसी कारण BIO-CLOCK को Mind Set की संज्ञा भी दी जाती है।अतः हम BIO-CLOCK में सद्विचार ही भरें आनंद से रहें।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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