जीवन का लक्षण सतत गतिमान रहना है । चाहे हम प्रकृति को देखे यथा पृथ्वी, चाँद-सूरज की गति आदि को जिनके बल पर सृष्टि का चक्र चल रहा है। इन सब का नियम अटल है। दिन – रात अपनी धुरी पर सर्वत्र गतिमान रहना हैं यदि थम जाए एक पल भी इनका चलना तो निश्चित ही प्रलय हो जाना, हाहाकर मच जाना हैं।
नदिया चले – चले रे , धारा चंदा चले – चले रे , तारा तुझ को चलना होगा – तुझ को चलना होगा । इसी तरह हमारा जीवन भी कही भी ठहरता नहीं है। आँधी से तूफां से डरता नहीं है। तू ना चलेगा तो चले तेरी राहें ! मंज़िल को तेरी निगाहें तरसेगी ! तुझ को चलना होगा। जो सफ़र में चला वो पार हुआ इसके विपरीत जो भी रुका वो बीच भंवर में घिर गया।
नाव तो क्या बह जाये कोई से भी किनारा क्योंकि समय की बड़ी ही तेज धारा है। मानव तुझ को चलना होगा इसलिए इस द्रुत गति के युग में चरैवेति चरैवेति का अनुगामी ही प्रगतिवान रहेगा। हम जीवन के ध्येय को जाने वह जीवन की भित्ति है, जिसके सुदृढ़ आधार पर आत्मा अपने चरम लक्ष्य-परमात्म-पद को उपलब्ध हो सकती हैं, अपना सर्वोच्च अभ्युदय कर सकती है।
अतःअपना विवेक और हित इसी में हमारा सुरक्षित है की हम जीवन की दुर्लभता और विशिष्टता समझकर उसका एक-एक क्षण सफल बनाए। हमें कभी जीवन में हार के रुकना नहीं है क्योंकि चलना ही ज़िंदगी है, इसी में जीवन का आनंद हैं , इसी में जीवन की गति हैं और जीवन की प्रगति हैं , इसी का नाम चरैवेति-चरैवेति है।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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