उसके पास सब कुछ था पर वह समस्या से भाग रहा था । माना की समस्या कम – ज्यादा है पर कभी – कभी उसके प्रति हमारा नजरिया भी हमको सही से आगे बढ़ने को प्रेरित करता है ।
हम देखे कि दरअसल वैज्ञानिक फार्मूला में तो यह बिल्कुल सही है कि उनमें तो जरा भी उन्नीस-बीस स्वीकार्य नहीं है पर हमारे रोजमर्रा के जीवन में बाकी सब क्षेत्र में यह सही से व्यवहारिक नहीं है।
हमारे सामने आज के समय इसके कई दृष्टव्य उदाहरण हैं जैसे जहाँ पूर्णता की यह अपेक्षा पूरी नहीं होने से मानसिक समस्याएं हुई हैं। वह मनों में उदासीनता छाई है , कभी-कभी तो समस्याएं और आगे बढ़ गई अवसाद तक पहुँच गई ।
उस समय यह तथ्य नजर अंदाज कर दिया जाता है कि दुनिया में अनेक उदाहरण हैं जहॉं प्रारंभ में असफल व्यक्ति भी बाद में शीर्ष स्थान पर पहुँचा है।
अतः हमारा व्यवहारिक दृष्टिकोण यही उचित है कि हमारा प्रयत्न पूर्ण दक्षता को प्राप्त करने हो पर मन जितनी मिल जाए उसको सही से स्वीकार कर ले।
एक घटना प्रसंग किसी ने कहा कि मेरी भी आदत हर किसी के काम में मीन मेष निकालने की थी । वह उसको किसी ने एक सुन्दर सलाह दी कि किसी में कोई कमी दिखाई दे तो उससे बात करो मगर हर किसी में ही कमी दिखाई दे तो खुद से बात करो।
इस बात पर उसको इस बात का हार्द समझ में आ गया और उसका नजरिया ही बदल गया । वह उसको जीवन में किसी भी तरह की समस्या का समाधान सामने द्रष्टिगोचर होता रहा ठीक इसी तरह हम सामाजिक परिपेक्ष्य में नजरिया के दृष्टिकोण से देखे तो काफी समस्या का हमको स्वतः समाधान मिलेगा।
हमको समाज में उस कार्य के प्रति हमारा सही चिन्तन भी हमको सही से आगे बढ़ने को प्रेरित करता है । हमारा किसी भी समस्या पर जरूरत से ज्यादा चिंतन, जिन्दगी को बोझिल बना देता है और दीमक बन कर खुशियों मे, खोखलापन ला देता है इसलिए जरूरी है चिंतन को,हम चिन्ता का सबब न बनने दें
क्रमशः आगे
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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