इस दुनिया में परिवार , समाज आदि में दुःख होता हैं , बीमारी होती हैं , उस समय हमें बहुत आजमाते हैं और उस समय हमारे रास्तों में मुश्किलें कम ज्यादा बिछी होती है जो की हमें हर हाल में सभी तरीके से तोड़ना चाहती हैं ।
उस समय हर कोई हमारा साथ छोड़ देते है या हमारे से बचना चाहते हैं । हर कोई उस समय डर से की कहाँ जानते बुझते फँसने में जाना हैं । यह डर है बड़ा संक्रामक। दावानल की तरह फैलता है। एक से दूसरे को, आगे से आगे अपनी गिरफ्त में लेता चला जाता है।
उस स्थिति में अपने मजबूत मनोबल से समय कम ज्यादा कितना लगे , बिना हटे डटकर साहस से जुटकर बाहर निकलना है । यह जो हार न मानने का जज्बा और अडिग हौसला है, वह ही हमें राह में आगे बढ़ाएगा।
आखिरकार हमारे साहस के आगे धरती , आसमां आदि ,सब मार्ग को प्रशस्त करेंगे । यह डर ही नहीं है सब कुछ, साहस भी है उतना ही ज्यादा संक्रामक। किसी एक की साहस भरी हुंकार , पल भर में डर की तरह ही आगे से आगे बढ़ने को उत्साहसे भरती जाती है।
एक बात है कि डर का सामना करते हुये जो अनुभव प्राप्त किया जाता है, वह आपकी शक्ति, साहस और आत्मविश्वास को बढाता है। फिर कायरता, अविश्वास, ड़र, चेहरे पे घबराहट का पसीना क्यों ?
अपने आत्मबल से हम अपनी ही कमियों पर प्रहार कर सफलता प्राप्त कर सकते हैं। असफलता तभी जीवन में आती है जब हम अपने आदर्श, उद्देश्य और सिद्धांत आदि को भूल जाते हैं । वरना मजाल है असफलता इंसान को तब तक नहीं मिल सकती , जब तक इंसान की सफलता पाने की इच्छा मजबूत है ।
सही कहते हैं की नई सुबह, नया सूरज, नया उज़ाला और नई किरणें हैं, बस कुछ ही दूर हैं , दीपक बन कर जल उठो तुम, दूसरों से पहले स्वयं का दूर अन्धकार कर लो. आत्मविश्वास का दिया जलता रहे।
हिचकिचाहट को दूर करने का उपाय सिर्फ़ आत्मविश्वास है। ज़िन्दगी का क्या है , वह कभी भी कहीं से भी शुरू की जा सकती है । गुरु महाप्रज्ञ का अमर वाक्य हर समस्या सुलझेगी, तुम उससे उलझना छोड़ दो ।
किसी भी तरह के डर से जो सहमा ,आगे बढ़ने से पहले , वही पहले ज़मीन पे गिरा । इम्तिहान से पहले इसलिए अगर मुश्किल के डर से बिखर जाते तो चोटी तक कभी ना पहुँच पाते।
इसलिए ज़िंदा रखते हैं हम आस के पंछी व साहस को ताकी वक़्त की थपेड़ों से उठते गिरते हिचकोले खाते आगे बढ़ते रहे। जिस तरह नदियाँ की धारा मे पत्थर का टुकड़ा बहता है, घिसता है , ठोकरें खाता हैं। घिस-घिस वही पत्थर पूजनीय बन जाता है।
बारिश का पानी भी नदियों मे बहता हैं, नालों में बहता हैं लेकिन वही जब सीप में पड़ जाए तो मोती बन जाता हैं। मेहनत से उठा हूं, मेहनत से सही की राह जानता हूँ, आसमाँ से ज़्यादा,जमीं की क़द्र जानता हूँ , संघर्षों के बड़े पेड़ ही , झेल पाते हैं आँधियाँ, मैं उन मगरूर दरख़्तों का हश्र भी जानता हूँ , जब से यह बात गुरु मुख से सुनी हैं ।
हिम्मत-जोश-जज़्बा-काम का जुनून सर चढ़ कर बोलता हैं। साझा कर रहा हूँ की – डर की क्या बात पथिक,चलिये काली रातों में, पथ में उजियारा,ख़ुद ब ख़ुद होगा,लो दीपक हाथों में, दुनियां का दीपक धोखा दे सकता है तूफ़ानों में, साहस का दीपक जलता रहता है झंझावातों में ।
मुश्किल के ऐसे माहौल में साहस भरी हमारी हिम्मत सबकी आँखों में चमक भर देती है। तब हमारा साहस डर से बड़ा हो जाता है।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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