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कर्म ( अमल ) : Deed

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कर्म का फल हमें हमारे किये गए कार्यों के अनुसार मिलता है। यह फल सकारात्मक भी हो सकता है, जैसे सफलता, संतोष, और सम्पत्ति आदि। नकारात्मक भी हो सकता है, जैसे असफलता, दुख, और दुर्भाग्य इत्यादि।

कर्म का फल हमें न केवल इस जीवन में, बल्कि आने वाले जीवन में भी भोगना पड़ सकता है, जैसा कि अनेक धर्मों में माना जाता है। इसलिए, कर्म के महत्व को समझकर हमें सही और उचित कर्म करना चाहिए।कर्म पर कुछ पंक्तियां:

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कर्म सिखाता है,  जीवन रास्ता !

सफलता, हार,  की कर्म है आस्था।

निश्चय करें यत्न फल का ना हो मन।

कर्म करते रहें हम,तभी मिले सम्मान।

न करें दुष्कर्म व छल,कर्म ही हो धर्म।

ईमान से करें कर्म,जीवन का है मर्म।

कर्म,शक्ति साथी, जीवन के हमराही।

कर्म ही हमारी प्रेरणा,यही हो धारणा।

कर्म हमारे जीवन का मूलभूत आधार है। कर्म के द्वारा हम न केवल अपने कार्यों के फल को अनुभव करते हैं, बल्कि इससे हमारा व्यक्तित्व, भविष्य निर्मित होता है। कर्म का महत्व गहरा और व्यापक है। यह हमारे जीवन का आधार होता है, कर्म हमें बल और साहस देता है और सफलता की ओर अग्रसर करता है।

यह हमें सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और धार्मिक मूल्यों को समझने में मदद करता है और हमें एक संतुलित और संगठित जीवन जीने में मदद करता है। अंततः, कर्म हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है जो हमें उच्चतम स्तर की उपलब्धि , वैभव और समृद्धि की दिशा तथा दशा देता है। कर्म के महत्व का विभिन्न धर्मो में उल्लेख मिलता है।

इस्लाम धर्म में कर्म का महत्व बहुत महत्वपूर्ण है। कुरान में कर्म को “अमल” के रूप में उल्लेख किया गया है, जिसका अर्थ है कर्म। इस्लाम में, परम ईश्वर के आदेशों का पालन करने और अच्छे कर्मों करने का महत्व बताया गया है। यहां भगवान के बताए हुए आदेशों का पालन करने और ईशदूत की राह में चलने का अहम महत्व है।

पवित्र कुरआन व हदीस के अनुसार पुरखुलूस नेक, सच्चे और न्यायिक कर्म से इंसान को जन्नत में जाने का मार्ग बनाता है, जबकि बुराई, दुष्कर्म और अन्याय करने से उसे दोजख में पहुंचने का रास्ता प्रशस्त होता है।

इस प्रकार, कर्म का महत्व इस्लाम धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक सिद्धांत है जो उत्तम और नेक कर्म क्रियाओं के माध्यम से आदमी मृत्युपरांत अल्लाह रब्बुल आलमीन, नेक आत्माओं के पास ले जाता है। कर्म ही इस जीवन और आखिरत के फल का मूल मापदण्ड और आधार है। हदीस के अनुसार,”हर कर्म या अमल का दारोमदार/आधार ही निय्यत(इरादे) पर मुब्नी/आधारित होता है।”

महाभारत में कर्म का महत्व विशेष रूप से अभिव्यक्त है। भगवद गीता में, धर्म व कर्तव्य और कर्मयोग का महत्व है। युद्ध की भूमिका में, जब अर्जुन को अपने प्रियजनों और गुरुओं के विरुद्ध युद्ध करना अस्वीकार्य होता है, लेकिन भगवान कृष्ण उन्हें इंसान के कर्म करने का महत्व समझाते हैं।

वे कहते हैं कि “अपने कर्तव्य का पालन कर, युद्ध करने का कर्तव्य, परिपूर्ण कर्म के रूप में स्वीकार कर और कर्म के फल की चिन्ता मत कर”! अतः महाभारत हमें यह सिखाता है कि कर्म का महत्व केवल अपने कर्तव्यों को निर्वाह में ही नहीं होता, बल्कि उसके प्रति सही अनुष्ठान करने में भी होता है।

शरीफ़ ख़ान

( रावतभाटा कोटा राजस्थान )

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