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देखो जी कर परहित भी : Dekho ji Kar Parahit Bhi

Dekho ji Kar Parahit Bhi
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आज के समय में सब अपने व अपनों के हित की सोचते व करते है लेकिन दूसरो के हित को देखने वाले बहुत कम विरले ही होते है।

शिवमस्तु सर्वजगत्: परहित-निरता भवंतु भूतग़णा: दोषा: प्रयांतु नाशं सर्वत्र सर्वे सुखिनो भवंतु । भगवान या तीर्थंकर की सदैव यही देशना रही की हम प्राणीमात्र के प्रति उनके दुखों के प्रति संवेदनशील रहे। उनके काम आ सके उनकी भलाई का सोचे। वैसे भी अपने लिए जिए तो क्या जिए औरों के लिए जीना ही जीवन है।

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हम जानते भी हैं और मानना भी चाहिए कि लाख यतन कर लेना भले ही संग ना कुछ भी जाना है तो हम विषयों की आशा नहीं बल्कि साम्य -भाव -धन रखे ताकि निज-पर के हित- साधन में जो निशदिन तत्पर रहे। अपना साहस-शक्ती-तप-बल और पराक्रम, हमेशा निज परहित हेतु करे अथक परिश्रम। सुख ही नही सुकून भी मिलेगा।

कर भला तो हो भला। हमारे पूर्वजों ने तो हमें दिया ओजस्वी प्रकाश-जगाया भीतर का सदैव विश्वास, ज़माने से लड़ने की ताक़त दी और नया सवेरा दिया ताकि हमारा निर्मल मन -निस्वार्थ सेवा भाव और त्याग की कसौटी पर हम प्रकाशमान हो।

हमारे दिल के तार सीधे ईश्वर से जुड़े, सही मार्गदर्शन से उत्थान हो। बदलना है स्वयं को कितने ही तूफान हों। कितनी ही आधियां हों भीतर एक ऐसा दीया है कि उसकी शमा जलाई जा सकती है। कितना ही अंधकार हो बाहर भीतर एक मंदिर है जो रोशन हो सकता है।

सब जीवों के प्रति करुणा के भावों और प्रमोद भावना हमारी सब जीवों के प्रति हो। सबके कल्याण में अपना कल्याण खोजें। सब जीवों को हम अपने जैसा समझें।

अतः यह मानवोचित है कि हम अपनी प्राप्त क्षमता, ज्ञान, प्रतिभा आदि का सही से उपयोग करके दूसरों की सेवा और भलाई के लिए भी करें यानि दूसरों के लिए भी जिएं।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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