ध्यान क्या है ? ध्यान बाहर से भीतर की ओर लौटना , किसी एक बिंदु पर मन को स्थिर करना, निर्विचार अन्तर्यात्रा , प्रत्येक क्षण जागरूक रहना , गतिमान चित्त की स्थिरता , भीतर की तटस्थता , जीवन की पवित्रता , सुषुप्त-शक्ति का जागरण , आत्म-समाधि का विश्वास , अखण्ड निर्मल ऊर्जा , सत्य की अनुभूति आदि है ।
अब प्रश्न उठ सकता है कि ध्यान किसलिए ? ध्यान संकल्प चेतना के विकास के लिए , चित्त की चंचलता को मिटाने के लिए , मन के विकारों को पकड़ने के लिए , मूर्च्छा की तेज गति को रोकने के लिए , स्वयं का आत्म-साक्षात्कार आदि करने के लिए हैं ।
अब आगे चिन्तन हो सकता हैं कि इसका परिणाम । ध्यान का क्या परिणाम ? ध्यान से कार्य क्षमता का विस्तार होता है , चित्त की एकाग्रता प्राप्त होती है , मानसिक प्रसन्नता की अनुभूति होती है , तटस्थ भावों का विकास होता है , प्रतिक्रिया मुक्त चेतना जागती है , चित्त समाधि मिलती है आदि – आदि ।
अप्पणा सच्चमेसेज्जा मेत्तिं भूएसु कप्प ए , स्वयं सत्य खोजें सब के साथ मैत्री करें। आहंसु विज्जा चरणं पमोक्खं , दुःख मुक्ति के लिए विद्या और आचार का अनुशीलन करें ।
महावीर ने प्रथम पात्र गौतम को चुना, उन्होंने बताया कि जीवन में महानतम उपलब्धि आत्म साक्षात्कार है और वह ध्यान से होती है, गौतम स्वामी प्राय : चार प्रहर ध्यान करते थे और चार प्रहर का स्वाध्याय, यह क्रम आगे बढ़ा, साधक ध्यान के समय तपस्या भी करते है |
जब ध्यान में बाधा उपस्थित होने लगती है तब ध्यान को छोड़कर तपस्या में लीन हों जाते है, जैन साधना में ध्यान का वही स्थान है, जो शरीर. में गर्दन का है। शरीर की शिथिलता , वाणी का मौन और मन का अंतर में विलीन होना ही ध्यान हैं ।
जागरूक चेतना का प्रतीक ध्यान है । जहां दुःख प्रवेश ही नहीं कर सकता, उस परम आनंद का रसास्वादन ध्यान कराता है । जहां प्रियता अप्रियता का भाव समाप्त हो जाता है, चेतना का वह क्षण ध्यान है ।
आदमी के जीवन को ज्योतिर्मय बना देती है वह ऊर्जा ध्यान है । ज्ञान और दर्शन के आवरण जहां समाप्त हो जाते हैं, वह निष्पति ध्यान है । ध्यान के फलित हैं – 1 -बुद्धि का परिष्कार 2 – मानसिक शांति और 3 – सात्त्विकता का विस्तार।
सत्य के साक्षात्कार की प्रक्रिया का नाम ध्यान है । ध्यान सिर्फ योगियों के लिए ही नहीं जन साधारण के लिए भी उपयोगी है । स्वाध्याय का चरम बिंदु , ध्यान का प्रथम बिंदु है । स्वाध्याय करते करते जब साधक की मानसिक एकाग्रता एक सीमा तक सध जाती है तो ध्यान फलित होता है ।
इस तरह हम कह सकते हैं कि हमारे भीतर में असीम शक्तियां छिपी हुई है, जो ध्यान के अभ्यास से उजागर हो सकती है व आत्मा सम्पूर्ण ज्ञान केवल ज्ञान को प्राप्त कर सकती हैं ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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