अगर शरीर है तो सबकुछ है कहते है की अगर आहार सही होगा तो शरीर भी स्वस्थ होगा । भोजन करे दवाई की तरह मनुष्य भोजन में ध्यान रखें तो औषधि की क्या जरूरत है , क्योंकि तब रोग आएगा ही नहीं और यदि प्रकृति के अनुसार भोजन ग्रहण नहीं करेगा तो भी औषधियों की जरूरत ही नहीं क्योंकि आहार के शुद्ध ना होने से रोग जाएगा नहीं।
एक महान आचार्य कश्यप ने कहा है “आहारो महाभैषज्यम उच्यते” अर्थात आहार से बड़ी कोई औषधि इस धरती पर नहीं है । जीवन को सुरक्षित रखने के लिए भोजन, पानी ,हवा आवश्यक है।
अनियोजित खानपान से शरीर अस्वस्थ हो जाता है, फिर दवाइयों की जरूरत पड़ती है। थोड़े दिनों में दवाईयां ही हमारी भोजन हो जाती है । संतुलित , शुद्ध ,सात्विक पोष्टिक आहार से स्वस्थ व निरोग रह सकते हैं।
स्वस्थ रहेंगे तो मन मस्तिष्क में अच्छे भाव बनेंगे। कहते है कि यदि तुम इस तन को स्वस्थ रक्खो तो यह मन भी स्वस्थ रह सकता है ।स्वस्थ तन और मन से साथ मीलों चलकर भी आदमी कभी भी नहीं थकता है ।
तन, मन स्वस्थ तो जीवन भी स्वस्थ, आदमी जी सकता है बनकर आस्वस्त।जो बीमारी से बचकर स्वस्थ रहता है उसके जीवन में सुख का झरना बहता है ।
स्वस्थता के लिए पौष्टिक खाना जरूरी है क्योंकि स्वाद के लिए खाना तो हमारी मजबूरी हैं । क्योंकि हमारा तन ही तो है जीवन का मूल स्थूल स्तम्भ। इसलिए इसकी सुस्वस्थता पर हमें आहार आदि का सात्विक दम्भ होना चाहिए ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)