हमें हमारे पूर्व जन्मों के सुकर्मों के फल से इस दुर्लभ मनुष्य योनि में जन्म मिला है जहॉं से मनुष्य अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है पर विडम्बना है कि यहॉं जन्म लेने के बाद मानव इस मुख्य बात को भूल जाता है और सांसारिक बातों में उलझता ही जाता है।
वर्तमान यानी आज का कार्य भली-भांति संपन्न करने के अतिरिक्त बाकि समस्त महत्वाकांक्षाओं को त्याग।यह बात भी सही की सफलता के मार्ग पर चलने वाले लोग वर्तमान में जीते हैं, वे कल की नही सोचते।
हमें न तो भूत में रहना है और न भविष्य में हमें तो सारी शक्ति आज के कार्य में लगानी है ।
बुद्धिमान लोग अतीत की घटनाओं पर नही पछताते, वे कभी भविष्य की चिंता नहीं करते, वे तो सिर्फ वर्तमान में जीते हैं और अपना कर्म पुरे साहस और ईमानदारी-पूर्वक करते हैं।
जब कोई व्यक्ति अपनी अपार क्षमता के प्रति सजग हो जाता है और समझ जाता है कि वह स्वयं ही अपने भाग्य के निर्माता है तो वह जीवन में वैसे ही उठने का प्रयास करता है, जैसे धरती पर गिरा हुआ मनुष्य उठने के लिए धरती का ही सहारा लेता है।
एक ओर बात अनुभव वक्त के संदूक में संचित वह खजाना है, जो भविष्य में काम आता है । भिन्न-भिन्न लोगों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के आनंद का क्षण होता है।
मानव अल्पकाल के क्षणिक भौतिक जीवन को ही आनंद के क्षण मान लेता है ,पर सच्चा परम् आनन्द तो हमारे खुद भीतर ही विराजमान है, इस के लिए सबसे पहले मन की प्रवृत्ति को अपने अंदर की ओर मोड़ना होगा।
सुख-दुख, हानि, लाभ ,क्रोध ,मोह और अहंकार आदि से मुक्त होकर स्वयं में स्थापित होना होगा अर्थात आध्यात्मिकता की ओर मुड़ना । जब मनुष्य अपने भीतर सही आनंद को खोज लेता है तो फिर वह बाहर के क्षणिक और नाश् वान आनन्द के पीछे नहीं भागता है।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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