हमारे कर्म योग से हमे यह मनुष्य भव मिला है ।इस जन्म की आउखे की घड़ी से पहले कि एक एक सॉंस हमारे लिये खास हैं।
क्योंकि मानव भव ही ऐसा भव है जिसमे मनुष्य अपने कर्मों के मैल को धो कर मोक्ष गति में जा सकता है ।
कहते है तेरी मेरी करते-करते एक दिन डेरा कूच कर हमको जाना है। एक तिनका भी साथ नहीं जाना है। जाना है तो केवल कर्मों का पिटारा, जिनका वहॉं निपटारा होगा । जैसे धर्म-कर्म किए वैसा ही फल पाना है। अत: भर लें सद्कर्मों से झोली।
मौत एक शास्वत सत्य और अवश्यम्भावी है । हम ये सब जानते हुए भी अपने प्रमाद के कारण डरते है । अप्रमादी को कहीं भी कभी भी कोई भयभीत नहीं कर सकता । जन्म के साथ ही हमारी मृत्यु की शुरुआत हो जाती है ।
आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने बहुत सुंदर कहा है कि अगर हम उस समय ही नहीं मरना शुरू करते हैं तो हम कभी भी नहीं मरेंगे जैसे जैसे पल बीतता है हमारा एक एक पल जीवन का घटता जाता है और सम्यक्त्व का भी यहीं कहना है कि जो जैसा है हम उसे वैसा ही रूप में समझे । क्या कोई गारंटी लेता है कि अगला पल उसका है।
कोई भी नहीं फिर भी इंसान भविष्य की कल्पना संजोकर अपना वर्तमान का सुख खो देता है।समय बहुत कपटी होता है,कौन सा क्षण अंतिम होगा,हम्हें नहीं मालूम पर भविष्य के सपने उसकी आँखों पर पट्टी ओढ़ा देते हैं।
आप निश्चित होकर मान लो कि जो होना है वो होकर रहेगा तो फिर भविष्य की चिंता क्यों ? इसलिये धर्म, आराधना और सत्संग आदि से जुड़ना चाहिए।
जीवन का सूरज ढलने से पहले, फूल मुरझाने से पहले, दीपक बुझने से पहले, अंधेरा होने से पहले, व्यक्ति को अपना जीवन समझ लेना चाहिए, इसलिए समय रहते, बुढ़ापा आने से पहले जीवन को ऐसा बनाना चाहिए कि मरने के बाद लोगों के लिए प्रेरणा बनें । समय को व्यर्थ गँवाने से हम डरे , सँवारे क्योंकि इसके सहारे ही आगे का हमारा घर है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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