कहते है कि हमारी सोच के इर्द – गिर्द ही हमारा जीवन रहता है ।यह हमारे ऊपर निर्भर है कि इसमें हम कैसे सिंचन करे । हमारी सोच हमारा अच्छा-बुरा महसूस करने का बैरोमीटर हैं ।
जीवन की राहें टढी-मेढी हैं तो सीधी सरल भी हैं।चट्टान सी कठोरतम है तो पानी सी तरल भी है।जिन्दगी कैसे जीयें?यह हमारी सोच पर निर्भर है ।
सोच सकारात्मक है तो अमृत है वर्ना गरल सी है। यदि हम यह देखते हैं कि दूसरों के पास क्या-क्या है और फिर खुद को देखते हैं तो चिन्तन अवश्य आ जाता हैं कि हमारे पास भी यह नहीं है यह होना चाहिये आदि – आदि तो हमें बुरा महसूस होना तय है।
इसके विपरीत वहीं यदि हम यह देखेंगे कि हमारे पास क्या-क्या है और उनमें से एक अच्छी-अच्छी चीजों की चिन्तन से सूची बनाते हैं तो हमें अच्छा लगना भी तय है।
ऐसा होते ही हमारे होठों पर मुस्कान फैल जाएगी और साथ में आँखों आदि में चमक भर जाएगी। जीवन में परिस्थितिवश हम व्यथित होने की बजाय मन को फिर से व्यवस्थित करने की और अग्रसर हो क्योंकि नकारात्मक माहौल मे रहना असफलता से बार बार सामना करने समान है ।
जैसे हम खुद ही खुद से मन में दुःख को इतना बड़ा कर देते है की राई सा दुःख पहाड़ बन जाता हैं जबकि सकारात्मक सोच हमें इस संसार में खुशियाँ दे सकती है और नकारात्मक सोच सिर्फ दुःख ही नहीं देती बल्कि हमको पूरी तरह तबाह कर देती है।
हमारी हर सोच आनेवाली परिस्थिति के बीज बोती है तो क्यों ना हम सकारात्मक सोच रखे, वैसे ही मीठे फल पाने के लिए? किसी मुश्किल घड़ी में यदि हम सकारत्मक रहे तो वह दुःखदाई परिस्थिति को भी सुखदाई बना देती है ।
इसीलिए तो कहते हैं कि हमारी सोच का तरीका अच्छा-बुरा महसूस करने का बैरोमीटर हैं जो कुछ हद तक हमारी प्रसन्नता और मायूसी मापने का एक मीटर हैं ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
यह भी पढ़ें :