कहते है कि जीवन में सफल वही हुआ है जिसने जीवन को सही से समझ लिया है। सतत प्रवाहमान हमारा जीवन सफलता-असफलता , आशा-निराशा, सुख-दु:ख आदि में ऊँच-नीच का एक झूला है ।
कष्ट को जीवन का आवश्यक अंग समझ समभाव से सहन कर उसे भूला है और सुख-आननद में नहीं फूला है वही समझदार है । जीवन की सच्चाई यानी की जिंदगी जीने की खोज में हम भला किस मौज में जी रहे हैं ?
जहाँ ना मिल रही खुशियाँ,ना खुशियों का पिटारा है,बस घूम रहे बन के इधर उधर सब आवारा है और इन सब के कारण एक सच्ची और मीठी मुस्कान भी कहाँ गुम हो रही है ।
ख़ुद के गिरेबान में झाँक कर कोई नही देखता किसी की भी ग़लतियाँ देखना निकालना आदि आसान है पर क्योंकि गलती, पीठ की तरह होती है,औरों की दिखती है पर अपनी नहीं ।
हर मनुष्य सफल होना चाहता है और सफलता के लिए समस्याओं से संघर्ष जरूरी है क्योंकि आयी हुई समस्याओं रूपी चुनौतियों का सामना करने और उन्हें सही से सुलझाने में जीवन का उसका अपना अर्थ छिपा हुआ है।
अतः समस्याएं तो एक दुधारी तलवार होती हैं वे हमारे साहस, हमारी बुद्धिमत्ता आदि को ललकारती हैं और दूसरे शब्दों में वे हम में साहस और बुद्धिमानी का सृजन भी करती हैं। मनुष्य की तमाम प्रगति उसकी सारी उपलब्धियों के मूल में समस्याएं ही हैं।
यदि जीवन में समस्याएं नहीं हों तो शायद हमारा जीवन नीरस ही नहीं, जड़ भी हो जाए। किसी ने सटीक कहा है कि हर मुश्किल के पत्थर को बनाकर सीढ़ियां अपनी बना जो मंजिल पर पहुंच जाए उसे इंसान कहते हैं।
वास्तव में देखा जाये तो जीवन में वही सफल हुआ है जिसने समझ लिया है कि कोई दु:ख मनुष्य के साहस से बड़ा नहीं हैं इसलिये हारा वही है जो लड़ा ही नहीं हैं ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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