ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

हारिये न हिम्मत : खण्ड-3

ADVERTISEMENT

कहते है कि दर्द में भी जो हँसना चाहो, तो हँस पाओगे; टूटे फूलों को भी पानी में डालो, तो उनमें भी महक पाओगे; ज़िंदगी किसी ठहराव में, कहीं रुकती नहीं; हिम्मत जो करोगे तो मंज़िल खुद-ब-खुद पाओगे । हमारी सोच पर ही जीत और हार निर्भर करती है ।

हम अगर मान ले तो हार होगी और ठान ले तो अवश्य जीत होगी । हम सुख को भी पचा ले और दुख को भी पचा ले । हम जीवन की हर अनुकूल व प्रीतिकूल सभी स्थितियों का बड़े आनंद के साथ मजा ले । हम हर स्थिति में सुख से जीना सीखें और हर परिस्थिति में संतुष्ट दीखें ।

ADVERTISEMENT

हमारे सुख से जीने का राज जब संतुष्टि ही है तो फिर हम क्यों इस संतुष्टि की सौरभ से नाराज हो क्योंकि जो निंदा व प्रशंसा दोनों में आनन्द मानता है, वह सुख से जीने के हर रहस्य को खूब अच्छी तरह जानता है।

इंसान जिंदगी मे गलतियाँ करके इतना दुःखी नही होता, जितना की वो बार – बार उन गलतियों के बारे मे सोचकर होता है । हमारी सोच जीत और हार पर ही निर्भर करती है ।

अतः जीवन में जो हो गया उसे सोचा नहीं करते, जो मिल गया उसे खोया नहीं करते है । वह जीवन में मंज़िल उन्ही को हासिल होती है जो वक़्त और हालात पर कभी भी रोया नहीं करते हैं ।

अतः हम जीवन में सदैव अतीत की सभी भूलों से सबक लेते हुए, भूतकाल की ज्यादा वह ज्यादा चिंता नहीं करते हुए क्योंकि गया हुआ समय जीवन में कभी भी नहीं आता है , भविष्य की चिंता से मुक्त होतें हुए वर्तमान में जीते हुए अपने सुनहरे भविष्य के लिए आनंदमय, सरळ,विनम्र एवं आध्यात्मिक आदि तरीके से जीवन जीने का प्रयास करेगे तो हमको निश्चित ही मंजिल प्राप्त होगी ।

यही हमारे लिए काम्य है।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

यह भी पढ़ें :

हारिये न हिम्मत : खण्ड-2

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *