कहते है कि समय अनिश्चित होता है व कल किसी ने नहीं देखा है तो क्यों ना हम वर्तमान में जीवन जिये और जीवन का आनन्द ले । भारतीय संस्कृति में ऐसे जीवन को जीवन कहा गया है जिसमें शांति हो, पवित्रता हो, आनंद हो क्योंकि इस संसार का सबसे बड़ा आकर्षण आनंद है ।
हंसना-मुस्कुराना एक ऐसा वरदान है, जो वर्तमान में संतोष और भविष्य की शुभ-संभावनाओं की कल्पना को जन्म देकर मनुष्य का जीना सार्थक बनाता है।
आनंद की उपलब्धि केवल एक ही स्थान से होती है, वह है- आत्मभाव। हर स्थिति में सम बने रहना ही जीवन का वास्तविक आनंद है। जीवन मे कठिनाइयां तो आती हैं ,उनसे भागना नहीं है बल्कि मनुष्य को उनका सामना कर आगे निकलना है।
हमे सही से परिस्थिति का सामना करना आना चाहिए। कैसी भी हों, हमें उत्थान की राह ही चुननी होगी। कहते भी हैं कि परिस्थितियों का दास नहीं बनना चाहिए, बल्कि उन्हें अपने अनुकूल ढालना चाहिए।
वर्तमान यानी आज का कार्य भली-भांति संपन्न करने के अतिरिक्त बाकि समस्त महत्वाकांक्षाओं को त्याग।यह बात भी सही की सफलता के मार्ग पर चलने वाले लोग वर्तमान में जीते हैं, वे कल की नही सोचते। हमें न तो भूत में रहना है और न भविष्य में हमें तो सारी शक्ति आज के कार्य में लगानी है ।
बुद्धिमान लोग अतीत की घटनाओं पर नही पछताते, वे कभी भविष्य की चिंता नहीं करते, वे तो सिर्फ वर्तमान में जीते हैं और अपना कर्म पुरे साहस और ईमानदारी-पूर्वक करते हैं।अतः हम हर आज को ही बेहतर समझकर उसका सही से आनंद ले।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
यह भी पढ़ें :-