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हेमंत हिमकर

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चंदन की समुचित घिसाई, सुगंध के साथ उसकी शीतलता मे भी नये प्राण भर देती है। विषय, और वस्तु के त्याग के साथ, जब जुङती है, अनासक्त चेतना की रश्मियां तो संयम और त्याग की यथार्थ परिभाषा को वह सम्यक् परिभाषित कर देती है।

हर मौसम का अपना- अपना महत्व है । वह हर मौसम अपने – अपने हिसाब से लाभ प्रदान करता है । गर्मी में हमारे को गर्मी लग रही होती है पानी – पानी व गले में शीतलता प्रदान करे वह ही खाने की चीज हम खाना ज्यादा पसंद करते है ।

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सर्दी के मौसम में गरिष्ठ खाना भी हम आराम से खा लेते है । शीत ऋतु का भी अपना अलग ही अहसास होता है । यह शीत ऋतु का मौसम हमको आगे बढ़ने के लिए वह कई शिक्षा प्रदान कर आदि प्रेरित करता है ।

जैसे प्रचण्ड तूफ़ान और मंद-मंद बयार एक ही बीज से तैयार हैं पर तूफ़ान में अपनी शक्ति का अहं एवं उग्रता साथ में है जबकि मंद-मंद बयार में शीतलता और विनम्रता है । वह जब प्रचण्ड रूप से तूफ़ान चलता है तो जो भी राह में आता है उसे उड़ा देता है, पेड़, झुग्गी-झोंपड़ी और कच्चे मकान आदि उखाड़ फेंकता है।

वह अपनी विनाशक शक्ति पर अपनी तोड़फोड़ नाशक प्रवृत्तियाँ पर गर्व करता है, वहीं मंद-मंद शीतल सुहानी बयार, राह में बहार बिखेरती जाती है वह सबको अपना प्यार लुटाती जाती है ।

अतः सदैव सादा जीवन-उच्च विचार मानव जीवन का श्रृंगार है जो शरीर पर धारण किये जायें, वे ही सिर्फ आभूषण नहीं होते। हमारा सदाचरण नैतिकता, प्रामाणिकता, ईमानदारी आदि आभूषण हमारे शारीरिक आभूषणों के साथ साथ अपेक्षित है , जो हमारे आत्मोत्थान में सहयोगी बनते हैं।

हालांकि शरीर चंदन से शीतलता व सुगन्ध से शोभायमान होता है और वाणी मिश्री सी मिठास से शोभायमान होती है, लेकिन इन सबके मुल में हमारे चिंतन और भावों आदि की शुध्दता मुख्य है , तभी कहा गया है चिन्तनपूर्वक बोलो और भावकिर्यापूर्वक सभी प्रवृति करो, जिससे कर्मबन्ध से बचा जा सकें।

वह तभी हम तीसरे भव में मुक्तिश्री का वरण करने का चरम लक्ष्य को पा सकने में योग्य हो सकते है, भावना भाते -भाते। यही हमारे लिए हेमंत ऋतु में काम्य है ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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