आकांक्षाओं के बोझ पालकर,क्यों हम इसे भारभूत बनायें ? हमें खुशियों के प्रवाह में बहते रहना है । आज हम मैं और हम के बीच झूलते रहते हैं। अतः आवश्यकता है हम अपने भीतर का थोड़ा-थोड़ा रावण जलाते रहें |
वह अपनी अहमियत को पहचानते रहें और जीवन के हर पहलू में संयम को कभी न भूलें। हम यह याद रखें कि संयम की सदा ही जय और अहं की पराजय होगी । हमारे जीवन मे आत्मोत्थान का सावन बरसता रहे जिसने राग-द्वेष कामादिक आदि सब जीते उसने जग जान लिया है । वह सब जीवों को मोक्ष – मार्ग का निस्पृह हो उपदेश मिलता रहे ।
हम बुद्ध, वीर जिन, हरि, हर ब्रह्मा या उसको स्वाधीन कहो वह भक्ति-भाव से प्रेरित हो हमारा यह चित्त उसी में लीन रहे और भक्ति में रमते रहे और बन सार्थक स्वर्ण कसौटी पर खरे उतरे मीरा की तरह जिसका ज़हर भी अमृत हो गया था।
हम यह जान ले आत्मा में शक्ती हैं वह मीरा सी भक्ति हैं। हमको भीतर में रहना हैं वह बाहर से कहना हैं क्योंकि हमारा जीवन समंदर हैं वह जीना भी अंदर हैं। अतः हमारी सर्वप्रथम भावधारा निर्मल होना जरूरी है।हम स्वस्थ चिंतन के बिना प्रसन्न मन की कल्पना करें तो वह निराधार है।
चिंतन और क्रियान्विति दोनों में समन्वय हो तब हम शान्तचित्त रह सकते हैं। भावशुद्धि प्रसन्न मन की जननी है अतः हम हर पल भावों की शुद्धि बनाएं रखें और उसके लिए हम सात्विकतापूर्ण सरल व निश्छल जीवन जीने का जागरूकता पूर्वक अभ्यास करने के प्रयासरत रहे।
हमारे भितर चाहत रहने से सफलता पाने में बाधा नहीं आएगी क्योंकि भावशुद्धि-भवशुद्धि का आधार है । हमारी भावना सागर के समान गंभीर हो , हमारा मन उसमें बहता पानी है ।
हमारी शब्दों की लहरे वाणी बन जाती है। हमें अपने अनंत शक्तिमय और आनन्दमय स्वरूप को पहचानना चाहिए तथा आत्मविश्वास और उल्लास की ज्योति प्रज्ज्वलित करनी चाहिए, इसी से हमको वास्तविक सुख का साक्षात्कार संभव है।यही हमारे लिए काम्य है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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