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कर्तव्य : भाग-1

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हम अपने अपने कर्तव्यों को दिल से सही से निभाये। हमको अपने जीवन का ख्याल स्वयं ही रखना है। वह मार्ग में आने वाली बाधाओं की हम चिंता नहीं करे जिससे जीवन की हर ऊँचाइयों को छु जाएँगे । हम जीवन में कर्तव्यनिष्ठ बने रहेंगे तो हमारे अप्रतिम शौर्य के आगे ऋतुएं भी नतमस्तक हो जायेंगी ।

वह इसके विपरीत जब कोई मोह के वशीभूत होता है तो वह कर्तव्य पथ को भूल जाता है , निज सम्मान खोता है । वह अपने जीवन के भविष्य के साथ विषैले बीज बोता है ।

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वह उम्र भर अपमान की गठरी सिर पर ढ़ोता है। हमारे जीवन की शैली अगर अध्यात्म की पुट से परिपूर्ण होगी तो हम जीवन के शाश्वत मूल्यों को सही से साकार कर प्राप्त कर सकते है ।

हम दुनिया में आते हैं, बड़े होते हैं, विभिन्न क्षेत्रों में ज्ञान प्राप्त कर अपनी रुचि अनुसार आगे बढ़ते हैं। हम में से जो विभिन्न विधाओं में विशेष पारंगतता प्राप्त कर लेते है उसका उपयोग कर हम विशेष तरक्की करते हैं।

हम साधारणतया अपने उस विशेष हुनर को, विशिष्ट ज्ञान को, सीने से चिपका कर रखते हैं ताकि दूसरा कोई हमारी प्रतिस्पर्धा में आगे न बढ़ जाए।

वह हमारी बराबरी न कर ले। हम बस मानवता के नाते यहीं भूल करते हैं। हम ऐसे में अपने विशेष ज्ञान को अपने पारिवारिक जन तक ही सीमित रख अंत में विदा हो जाते हैं।

इस तरह हमारा सम्पूर्ण विशिष्ट ज्ञान हमारे अपनों तक ही सिमटा रह जाता है। मैं समझता हूँ यह एक मानवीय अपराध है।

अतः यह हमारा पावन कर्तव्य है कि हम अपने विशिष्ट ज्ञान से हम तो लाभान्वित हों ही, समाज को भी समृद्ध करें। हम अपने ज्ञान को बाँट-बाँट कर लोगों को भी आगे बढ़ने के लिये सही से प्रोत्साहित करें। ऐसा करने वालों का समाज और राष्ट्र भी समृद्ध होता है।

यह हमारी भूल है कि हमारे ज्ञान को हम अपनी निजी संपत्ति मान कर चलते हैं। किसी ने बहुत उचित कहा है कि अपनी कब्र में अपने सर्वोत्तम गुणों को गोपनीय रख कर न ले जाएँ।वे यूँ ही नष्ट हो जायेंगे। उन्हें जाने से पहले हम खुले दिमाग से बाँटें और मानव होने का कर्तव्य निभाएँ।
( क्रमशः आगे)

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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