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कटु सत्य : Katu Satya

Katu Satya
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हम देखते है की लोग जिनके पास पैसा होता है उसके पास स्वयं जुड़ने को आतुर रहते है । व्यक्ति के गुणों से नहीं बल्कि व्यक्ति की स्थिति से उसके पास जाते है ।

इसके विपरीत ज्यो ही उसकी स्थिति बदली उससे दूर हो जाते है । यह स्थिति विकट है । पहले समय में लोग अनाज , कपड़े , खाने पीने की जो भी वस्तु होती, उसके बदले अपने जरूरत की वस्तुएं खरीद लेते थे।

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आज के काल में भी आदिम सभ्यता का वस्तु विनिमय ,धातु और कागजी मुद्राओं से लेकर आधुनिक डिजिटल मनी सभी प्रचलित है पर अब स्वरूप बदल गया है, मानव सभ्यता का तेजी से विकास हुआ और उसके मन में यह भाव आया कि पैसे की ताकत ही जीवन में सबसे बड़ा साधन है।

उसके बिना जीवन सूना है, उस के बल पर वह कुछ भी कर सकता है ।पैसे को साध्य मानने वाले लोग आज भी पैसे से बड़ा मानव सभ्यता को मानते हैं पर ऐसे लोग काफी कम हैं उनके लिए यह मोह माया है , परन्तु वास्तविक जिंदगी में मुद्रा बहुत जरूरी है ।

रोजी-रोटी, शिक्षा स्वास्थ्य, न्याय ,आवागमन ,सामाजिक कार्य , पर्यटन , आवास आदि में मुद्रा का ही बोलबाला है फिर भी मानव समाज को समृद्ध करने के बजाय अंतहीन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उनकी लालसाएं बढ़ रही है ।

जिसका समाधान केवल यही है कि मानव छोटे-छोटे व्रतों का पालन करें। मनुष्य के जीवन में मुद्रा की उपयोगिता एक हद तक है ,पर वह हद को न लांघें, अनासक्त भाव रखें तो शांति व सुखदायक जीवन जी सकता है ।

इसमें मेरा चिन्तन यह है कि प्रगति करनी है तो मुद्रा का प्रयोग करना अति अनिवार्य है पर इंसान को अपनी मन की शांति रखनी है तो वो उस इंसान के ऊपर निर्भर करता है कि मुझे अपनी लाइफ़ बेलेंस कैसे बनानी है।

तब सार यह निकला कि जो साधक मनुष्य जीवन का ध्येय आत्मकल्याण में लगे हैं, उन्होंने परिग्रह त्याग दिया, तो उनके जीवन को क्या कहेंगे ?

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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