मानव भव मिला इसका हमको क्या लाभ ? ज्ञानी संतो की वाणी मिली , सत्य और अहिंसा की शक्ती मिली आदि – आदि पर इसका हमको क्या लाभ ? हमने क्या लाभ उठाया ? क्योंकि हम तो इस भौतिकवाद और उपभोक्तावादी चकाचौंध मे बुरी तरह फँस गये हैं जिसमे संसार की इस क्षणभंगुरता में ख़ुद को हमने जकड़ लिया है ।
कोई डर , भय आदि नही क्यों ? क्योंकि इतना मन मे जानने के बाद , समझने के बाद हम जीवन में दिशाहीन हो रहे है । जब की हम जानते है की मनुष्य जन्म अनमोल रे , मिट्टी में मत रोल रे , अब जो मिला है फिर ना मिलेगा,कभी नही-कभी नही ।
फिर भी इस इच्छा पूर्ति के लिए आदमी समुद्र पार दौड़ रहा है वह समझ ही नही रहा और स्वर्ग पाताल राज करो आदि – आदि तृष्णा की अति अधिक आग लग रखी है ।
इस मानव जन्म रूपी स्वर्णथाल का उपयोग हम धूल फेंकने के लिए , अमृत का उपयोग पैर धोने के लिए, उत्तम हाथी आदि का उपयोग लकड़ियों की ढुलाई के लिए तथा इसके साथ चिंतामणिरत्न क़ौआ उड़ाने के लिए फेंकने वाला हम काम कर रहे हैं।
इस मानव जन्म का सही लाभ नही उठा पा रहे है । हम लक्ष्य हो या ना हो दौड़े जा रहै है दौड़े जा रहे है। अपना मानसिक संतुलन खोते हुए और अधिक उलझनों में उलझ रहे हैं, समय कम काम अधिक क्षमता कम तो हर काम अधूरा छोड़ हम एक से दूसरे-तीसरे काम में हाथ डाल रहे है ।
ना परिवार में हमारा सामंजस्य है । सिर्फ़ स्वार्थी टकराव ,अहं की कश्मकश में वह भी पारस्परिक विश्वास और समय की कमी के कारण हो रहा है ।
अरे ! सफलता भी फीकी लगती है यदि कोई बधाई देने वाला नहीं हो और विफलता भी सुन्दर लगती है जब आपके साथ कोई अपना खड़ा हो। इस सम्पन्नता पर धिक्कार है । क्या हमारी जिन्दगी का यही मकसद है ? हमें तो यह स्वीकार नहीं है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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