आज के समय की सबसे बड़ी समस्या है कि लोग क्या कहेंगे । लोग तो चढ़ते हुए को हँसते है और उतरते हुए को भी देख हँसते है इसलिये लोगों का क्या है ।
ऐसे में उचित है कि निसंकोच अपने तरीके से चलते जाना है । कोई कुछ भी समझे उस ओर ध्यान ही न देना। समझ लें ! लोग शायद पहले दिन हँसेंगे, दूसरे दिन उसका मजाक उड़ाएँगे और तीसरे दिन भूल जाएँगे।
इसलिए लोगों की परवाह क्यों करें जो उचित लगे वो करें। जिससे हम खुश हों वो ही करें। हमारी बाह्य दृष्टि तक ही चिंतन न चले ,हम अंतर्दृष्टि और बाह्य दृष्टि दोनों का सन्तुलन का जीवन जीयें तो सब समस्याओं से रहित शांत जीवन जी सकते है।
अनेकांत की भगवान महावीर की शैली हमें प्राप्त है ।गुरुदेव तुलसी जी ने भी श्रावक संबोध में हमें बार-बार जैन जीवन शैली के सूत्रों में यही सब सामंजस्य बैठाकर शान्ति के साथ सहज -सरल जीवन जीने की प्रेरणा दी हैं । जिंदगी एक किताब की तरह होती है ।
हर एक जिंदगी एक किताब की तरह होती है जिसकी कहानी पहले पन्ने जन्म से शुरू होती है , किताब के बीच में तमाम उतार चढ़ाव भरे रहते है ।
जिंदगी की शाम जब रात में बदलती है वही जिंदगी का आखिरी पन्ना कहते है। यूं तो हर एक जिंदगी की अलग अलग कहानी होती है पर सुबह और रात हर जिंदगी की एक सी होती है, जिंदगी की सुबह और रात कोई भेद नही करती है । हमे यह याद रखना है कि जिंदगी हमारी है लोगों की नहीं। हमारा जो सुचिंतित पथ है वही सही है।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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