प्रतिवर्ष हम वर्ष का अन्तिम दिन मनाते हैं । समय अपनी गति से अविराम चल रहा है । आज के दिन सब कह रहे है कि आज साल का आखिरी दिन हैं लेकिन इसमें मेरा चिन्तन है कि अभी वो आख़िरी दिन नहीं आया हैं क्योंकि जब जन्म लिया वो प्रथम दिन था ओर जिस दिन आखिरी स्वाँस होगी वो अंतिम दिन होगा ।
पुराने साल का बीत जाना व नए साल का आगमन तो जीवन के साथ चल रही मजबूरी है । समय तो आज़ाद है यह बांधे नहीं कभी बँधा नहीं है । एक काल्पनिक अंश को साल बना बीते दिनो का हम आंकलन करते है ।
कुछ खट्टी मिट्ठी यादें , कुछ सुनहरे पल आदि को हम जीवन में संजोये क्योंकि अच्छी चीज को ग्रहण करना चाहिए और कुछ गलत चीज जैसे भूले , शिकवे, शिकायतें ओर गिले आदि को हम छोड़ जीवन को सदाबहार बना सके , पर इसके साथ ही बीती साल के अन्तिम दिन पुराने जीवन का लेखा जोखा करना भी जरूरी है ।
इसके लिए नये साल के प्रथम दिन एक नई शुरुआत नयी ऊर्जा उमंग के साथ जीवन को हमको योजनांवित करना है और तब नए वर्ष के प्रांगण में अपने इन चरणों को धरना हैं , जिससे सुख़द सुनहरे भविष्य की ओर हमारा प्रयास रहे , इसमें भूत के अनुभव से बिगड़ी सुधारना है और बीते कटु व्यवहार, यादगार आदि को भुला प्रेम, सदव्यवहार से आगे आने वाले दिन को सार – सँभाल कर सँवारना हैं ।
हमारी छोटी जिन्दगी को हम बेज़ार,बदहाल ओर ज़हरीली आदि न बनाये । हम प्रेम ,सकारात्मक ओर मेत्री आदि के गीत सदैव गुनगुनायें , सब से दोस्ती का हाथ मिलाते रहे , एक दूसरे का सहारा बन क़ाफ़िला आगे बढ़ाते चलायें।
नया साल नहीं हर सूरज की किरणो के साथ हर पल सुनहरा ओर हँसी ख़ुशी का दिन आदि सब एक परिवार बन मिलकर बनाते चले जिससे नयें साल के शुभारंभ के दिन मन और जीवन मे नया उल्लास हो व हर चिंतित कार्य के साथ संलग्न सफलता का सघन विश्वास हो । सुख़द, शुभ भविष्य , उच्च , सार्थक जीवन की ओर हमारे क़दम बढ़ते जायें । यही हमारे लिए काम्य हैं ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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