प्रायः यह आम धारणा है कि खुशियों को पाना है तो जी – तोड़ मेहनत करो व दुनिया हिला दो जबकि यह एकदम मिथ्या सोच है
क्योंकि वास्तव में खुशियाँ संतोष से मिलती है व अपने शक्य श्रम से मिले जो कुछ उसी में तोष करने से होता है ।
उसके लिए तथाकथित कर्ता के प्रति कृतज्ञता के भाव से खुशियाँ हमको मिलती हैं न कि मनोनुसार न मिलने पर आक्रोश करते रहना चाहिये । साधु – साध्वी त्यागी सन्तों आदि को छोड़कर प्रायः प्रायः हमारे जीवन की यात्रा भी अजीब हैं कि भले ही यह हमको नहीं सिखा सकता कि खुशी को कैसे जोड़ा जाए या उदासी को कैसे कम किया जाए।
लेकिन यह एक महत्वपूर्ण बात सिखाता है कि हर समस्या का हल है। अगर कोई ऐसा है जो छोटे-मोटे सुखों के लिए भी मन से कृतज्ञता का भाव रखता है तो वह निश्चित ही मेरे चिन्तन से सुख संतोष व शांति आदि का आनन्द चखता ही है।इसके विपरीत जो व्यक्ति सुख-सुविधाओं से लैस होने पर भी और-और की लालसा लिए रहता है उसके मन में निश्दिन असंतुष्टि का दरिया ही बहता रहता है।
जीवन में खुशियां संपत्ति और साधन से नहीं बल्कि संतोष, संतुष्टि , सकारात्मक सोच व प्रेम आदि से मिलती हैं। जिस तरह चंदन का पेड़ अपनी सुगंध चारों और फैलाता है उसी तरह यदि हम सकारात्मक उर्जा और खुशी के साथ ( आजकल समय का अभाव है) बुजुर्गों के पास थोड़ा समय निकालकर उनके पास बैठें तो उनके चेहरे का नूर देखने लायक होगा और हाथ आशिष के लिए उठें रहेंगे।
किसी जरुरतमंद की सहायता कर सकें या किसी के चेहरे पर हंसी ला सकें तो खुशी की बात होगी। बस हमारा नजरिया खुशी बांटने वाला हो। अतः हम अपने जीवन में सदा संतोष का स्वभाव, कृतज्ञता के भाव आदि रखे तो हमारे जीवन में आनंद का अभाव कभी नहीं होगा ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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