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सत्पथ पर आ जाए अंतरात्मा

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कामना, तृष्णा , ईर्ष्या , असंतोष , क्रोध आदि – आदि मानव को सही राह से दूर करते रहते है । समय बदलने के साथ-साथ व्यक्ति के व्यवहार के साथ पारिवारिक, सामाजिक वातावरण पर भी असर अवश्य आता ही है।

आजकल पढ़-लिखकर उसी अनुसार जीवकोपार्जन के लिए दूर चले जाना मजबूरी नहीं , Compulsion है। आज जमाना तो बदला ही पर साथ में इंसान की सोच भी बदल गयी ।

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इस आर्थिक उन्नति के पीछे भागते हुये इंसान रिश्तों की मर्यादा भूल गया।आज अख़बार में प्रायः पढ़ने को मिलता है कि अमुक व्यक्ति ने अपने पिता की सभी जायदाद हासिल करने के लिए बाप-बेटे के रिश्ते को तार-तार करते हुये।

क्या – क्या कर दिया स्वयं को जन्म देने वाले और उसकी परवरिश करने वाले माँ-बाप के साथ भी इसलिये आज के वर्तमान समय को देखते हुये सामाजिक स्तर पर यह सही चोट है कि इंसान ने भौतिक सम्पदा ख़ूब इकट्ठा की होगी और करेंगे भी पर उनकी भावनात्मक सोच का स्थर गिरते जा रहा है जो प्रेम-आदर आदि अपने परिवार में बड़ों के प्रति पहले था वो आज कंहा है ?

अंहकार,ममकार के तिमिर पर, विवेक,संयम की लौ प्रज्वलित कर प्रहार करें। राग-द्वेष की परतें जन्म- जन्मान्तरों से हमारे भीतर बहुत गहरे जमी हुई हैं।

इनसे निजात पाने के लिए हर किसी को अनवरत-अविराम संघर्ष करना पङेगा क्योंकि इनको मोह ‘माया, छल, प्रपंच के सबल,सशक्त चेहरे आदि पोषित कर रहे है ।

जिस तरह एक मकान की नींव कितनी ही मजबूत क्यू न हो पर आकर्षक वह भीतरी साज-सजा से ही लगता हैं । इसलिये हम करे इष्ट से प्रार्थना कि हमारी भावना हो करुणापूर्ण और करे बस एक ही याचना कि हमारी अंतरात्मा शीघ्र सत्पथ पर आ जाए ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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