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जीवन है परिवर्तनशील

Life is changeable
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परिवर्तनशीलता का साक्षात उदाहरण मानव जीवन हैं । मानव जीवन की परिवर्तनशीलता को मैं अपने जीवन की कुछ घटनाओ से रख रहा हूँ, मैं छोटा था तो मेरे साथ मेरे और भी भाई – बहन थे दादीसा , बाईंमाँ ( बड़ी ममी ) का अनुशासन कड़ा था वो दोनो प्रातःकाल हम सब को कहते थे कि पहले महाराज के दर्शन करके आओ , माला फेरो , फिर नाश्ता हैं नहीं तो नहीं हैं ।

आज के समय यह ऐसा कुछ मुझे लुप्त दिखाई दे रहा हैं । मैं दिवंगत शासन श्री मुनि पृथ्वीराज जी स्वामी (श्री डूंगरगढ़ ) से भक्तामर सीख रहा था तोउन्होंने मुझे उस समय भक्तामर का 22 वां गाथा अशुद्ध होने से खड़े – खड़े शुद्ध करवाया था ।

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आज के समय कोई किसी को कड़ा बोल भी दे तो वो उससे बोलना तो दूर उसके पास तक नहीं जायेगा । मैं छोटा थातो हमारे घर में 50 व्यक्ति साथ में रहते व खाते – पीते थे व सब मेंप्रेम परस्पर रहता था और आज कल भाव से एकल प्रथा का चलन समाज परिवार में सब जगह चल पड़ा हैं । यह है मानव जीवन की परिवर्तनशीलता ।

ऐसा नहीं है कि धर्म , आचरण आदि की उपयोगिता कम हो गयी हैं बल्कि मनोबल , सहन करने की क्षमता व सामने वाला कुछ कह रहा हैं उसके कहने वाले के भावों को समझना आदि कम हो रहा हैं ।

जीवन अगर किसी भी दृष्टि से परिवर्तनशील नहीं हो यह तो आज के समय में सम्भव नहीं हैं । जीवन हैं तो परिवर्तनशीलता अवश्य होगी ही होंगीं । युग है अनवरत परिवर्तनशील।

आदिमकाल से आज के तथाकथित सभ्य युग तक की यात्रा में आदमी ने तय किए हैं समय के अनगिनत मील । इस अवधि में आदमी की शरीर रचना तो बदली ही है और बदले हैं उसके आचार, विचार और व्यवहार भी।

अन्य बिन्दुओं के साथ एक बिंदु जो चिंतनीय है वह है पारस्परिक बर्ताव का भी। समय की इस दीर्घ यात्रा में हमारे आपस के सम्पर्क तो कम या ज़्यादा बढ़ रहें हैं पर पारस्परिक संबंध घट रहें हैं।

घनिष्ठतम संबंधों में भी यह हो रहा है धीरे -धीरे ह्रास। लुप्त प्राय: हो रहा है सदियों पुराना मिठास। तीव्र गति की तरह बढ़ रही है यह औपचारिकता और घट रही है आपस में ह्रदय में रहने वाली आत्मीयता।

हम नहीं जानते कहाँ रुकेगी यह सभी तरह की जीवन की परिवर्तनशील हो रही यात्रा। हम कह सकते हैं इसके लिए जिम्मेदार हैं हम स्वयं ।तो कुछ आज के जीवन की परिस्थितियाें में आई सभी तरीक़े से विकृति और कुछ तेजी से पनपती यह भौतिकता प्रधान संस्कृति की प्रवृत्ति।

सब कुछ बड़ी द्रुत गति से बदल रहा है।यह बदलाव बड़े-बुजुर्गों के व अनुभवी गहरे ज्ञानीजनो आदि के मन में तो बहुत खटक रहा है। वे किंकर्तव्यविमूढ़ हैं कि यह क्या हो रहा है? उनके लिए आत्मीयता से औपचारिकता को करना स्वीकार ।

संबंधों व सम्पर्क आदि के रूप में हो रहा यह परिवर्तन को करना अंगीकार उनको असंभव सा लग रहा है। कोई नहीं जानता यह परिवर्तन की यात्रा कहाँ जाकर रुकेगी और पुनः कब वह उलटा मोड़ लेगी। यह तो हम सब जानते हैं की सुख और दुःख तो धूप छाँव की तरह हैं।

जीवन में होने वाले आकस्मिक परिवर्तनों के प्रति भी हम यही सोच मन में धारण कर लें तो बदलाव को स्वीकार करना बहुत सहज हो जाए।वैसे समय तो इसकी सबसे कारगर दवा है ही। समय के साथ सब कुछ विस्मृति में चला जाता है। हमें तो बस मौक़े -मौक़े ही यह याद आता है।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
(23- 12- 2024)

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