मन का मौन जीवन में भी शांति लाता है और साथ ही हमें व्यर्थ के चिंतन और भटकन से बचाता है। वाणी का मौन जब शक्ति का संवर्धन करता है तो नई ऊर्जा से जीवन का पल पल संवरता है।
इसलिए जरूरी है हम वाणी और विचारों के प्रवाह को थोड़ा विराम दें और जीवन जीने को किसी नई विधा का नाम दें। मौन से संकल्प शक्ति की वृद्धि तथा वाणी के आवेगों पर नियंत्रण होता है। मौन आन्तरिक तप है इसलिए यह आन्तरिक गहराइयों तक ले जाता है।
मौन के क्षणों में आन्तरिक जगत के नवीन रहस्य उद्घाटित होते है। वाणी का अपब्यय रोककर मानसिक संकल्प के द्वारा आन्तरिक शक्तियों के क्षय को रोकना परम् मौन को उपलब्ध होना है।
मौन से सत्य की सुरक्षा एवं वाणी पर नियंत्रण होता है। अतः मौन के क्षणों में प्रकृति के नवीन रहस्यों के साथ परमात्मा से प्रेरणा मिल सकती है। आदमी के जीवन यात्रा को अच्छा बनाने में कुछ सहायक तत्व भी होते है व वाधक तत्व भी होते है जिसमें क्रोध, मान, माया, लोभ बाधक हैं।
ज्ञानी गुरु भगवंत फ़रमाते हैं की कभी किसी प्रकार का अहंकार न करे ज्ञानी हैं तो ज्ञान का दिखावा व प्रदर्शन नहीं होना चाहिए। अपने ज्ञान के बारे में कुछ कहने बताने का मौका आये तो मौन रहें व शक्तिशाली होने पर भी क्षमाशील रहे।
समय-समय पर हम विवेकशील रहे क्योंकि शब्द तो हमें बाहर भटकाते हैं जबकि मौन स्वयं से भीतर ले जाकर हमारा परिचय कराता है ।
मौन हमारे अंतर-अखण्ड में आत्मलीन होकर मिलन कराता है। इसीलिए मौन का बहुत महत्व कहा जाता है जो हमारी ऊर्जा का संचय तो कराता है ही साथ में स्व से भी परिचय कराता है।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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