यह हमारी बहुत बड़ी विडम्बना हैं की हम कहते हैं की ख़ुश हैं लेकिन वास्तविकता हमें और कुछ दिखती हैं या यों कहे की कथनी – करनी की असमानता भी रहती हैं ।
काफ़ी जन इस मंतव्य को इस दृष्टि से सही मानते हैं की भितर की बात किसको बतायी जायें और उचित समाधान लिया जाये ।
समाधान करने के लियें चन्द विरले ही हैं बाक़ी सब तो बात इधर की उधर करते हैं व अपना राग – द्वेष रूपी आदि किसी भी तरह का हित साधने को ज़्यादा आतुर रहते हैं व बात का मज़ा ले लेकर आनन्द और लेते है । ऐसे लोगों की हमको सब जगह फ़ौज खड़ी मिलेगी ।
बात बताने से बात और ज़्यादा उलझती है व समाधान सामने होते हुए भी नहीं हो पाता है इसलिये इन्हो अपना दोहरा आचरण बना रखा हैं । मान लो उनके दृष्टिकोण को आज के युग के हिसाब से सही भी हैं
परन्तु हैं तो पाप कर्म बाँधने का ज़रिया इससे आत्मा कितने कर्मों के आवरण से बोझिल हो रही हैं । जीवन भितर से प्रसन्न व सदाबहार बनना तो दूर हर समय बेचेन व दुःखों से भरा अवश्य बनता हैं ।
यह बहुत बड़ी विकट समस्या हैं । दुःख किसी न किसी रूप में सबके होते हैं फिर भी ऐसा आचरण हम करते जाते हैं व जीवन को प्रसन्नतापूर्वक सदाबहार नहीं बना पाते हैं ।
हो सकता हैं किसी के जीवन में दुःख कम हो और किसी के जीवन में दुःख ज़्यादा हों । भितर से अप्रसन्न रहकर हम दुःखों को और ज़्यादा बढ़ा रहे हैं व दुःख निवारण से दूर से दूर हो रहे हैं ।
इसके विपरीत यदि हम निरन्तर भितर से प्रसन्न रहना शुरू कर दे या हैं हर परिस्थिति में डटकर सम्भाव से रहे तो मानो हमने दुःख निवारण व प्रसन्नता से सदाबहार जीवन जीना सिख लिया ।
एक ही दिन में बिगडने वाले दूध में कभी नहीं बिगडने वाला घी भी छिपा है| इसी तरह हमारा मन भी अथाह शक्तियों से भरा है |
उसमें कुछ सकारात्मक विचार डालो, नकारात्मकता को पास ही न आने दें । दुःख हो तो भी नकारात्मकता को मत आने दो फिर अपने आपको मथो अर्थात चिंतन करो …..अपने जीवन को और ख़ुशहाल बनाते रहे तब देखना आप सदैव प्रसन्न रहने वाले सदाबहार व्यक्ति बन जाओगे| फूलों से सदाबहार सीख़ लें हम ।
आंधी तूफ़ान हो बरसात ,खिली सुनहरी धूप हो ,सूर्य देव का ताप , अँधेरी व चाँदनी रात , रहते हैं खिले खिले, न रोये , लुभाते हर दिल को सदाबहार। इंसान तू भी अप्रसन्न मत रह कभी रहना सदैव तरोताज़ आये जो भी मुश्किलें हर बार।
चक्र ख़ुशी और गम का घूमता यूँ ही सबका परन्तु हर रात बाद उज्जास व दुःख के बाद सुख फिर रोके क्यों कदम प्रसन्नता से सदाबहार रहने के व चलता चल सुबह तो होगी हर हाल। सदैव प्रसन्नता की कीमत है व आशा का इंधन हैं ।
जीवन चक्र तेरा है फिर क्यों,तू होता उदास। जिंदगी जिन्दा दिली का नाम है । सिर्फ़ मुस्कराकर व सदाबहार रहकर जीना तेरा काम है । दुनियां में सब उस से करते प्यार हैं।
अपने ही रोने और दुखड़े तो बहुत है सबके । सकुनऔर हंसी की सदैव तलाश है वो अगर मिले तो जिंदगी सदाबहार है। हंसी की दूकान नहीं जो दौलत से हम खरीद ले या जोर जबरदस्ती कर लूट ले।
कोई विरल्ला ही होता है जो अपनी ख़ुशी दे व गम ले ले। दुःख देने वाले मिलेंगे सब जगह बहुत ,कोई सुख की लाटरी बेचे ऐसा कोई मिला नहीं।
मुक्क़दर में ख़ुशी लिखी है तो मिलेगी हमको जरूर।ग्यानी कहते -ख़ुशी तुम्हारे भीतर है! बाहर नहीं ,अपने अंदर खोजो।संतोष करना हम सीखे , बीती बाते को भूलो औरो को क्षमा करते चलो व अनासक्त भाव से जीवन जिओ फिर देखो किसकी मज़ाल है?
जो आप को करे दुखी।जीने की कला ये सही से आ जाये तो हर दिन एक नयी सुबह होगी व हर रात नयी होगी। बस आज में ही जीलो ,बीती बात और पीढ़ियों की चिंता छोड़ो, कूड़ेदान में उसको डालो, बस सारभूत ही रखो पास।
खुद हंसो औरो – औरों को भी सदाबहार रहकर हँसी का उपहार बाँटते चलो। हंसने का लगता नहीं हैं कभी पैसा , खिलता जीवन फूलों जैसा। जिंदगी तो कटेगी ही ऐसे चाहे रोकर या हँसके।
फिर ये जीवन मिले या ना मिले इसलिये वक्त और हर लम्हे को भितर से प्रसन्न रहकर सदाबहार रहकर हंसी से भर लें।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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