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मन चंगा तो : Man Changa to

Man Changa to
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जब मन का कचरा दूर हो जाता है तो भीतर का आनंद भरपूर होता हैं क्योंकि बाहरी कचरा जितना हमें नुकसान नहीं करता उससे ज्यादा नुकसान अंदर का कचरा करता है ।

अंदर का कचरा दूर होने से ही हमारे जीवन का आंतरिक ढांचा संवरता है । जब हमारा मन चंगा हों जायेगा तो कठौती में भी गंगा उतर आएगी ।

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जहां सफाई का अभियान चलता रहता है तो वहाँ जीवन का मान बढ़ता है । विनय,समर्पण,सद्भाव -पूर्ण हमारा शालीन व्यवहार हमें जिंदगी में ऊंचा उठाता है । ऊंचा उठना हो या पहाड़ पर चढ़ना हो आदि बुलन्द हौंसले के पंखों की जरूरत होती है।

हमारा लक्ष्य ऊंचा हो,मजबूत मनोबल हो और साथ में विनय -समर्पण के भाव हो तो हम निश्चित ही अपनी कितनी भी बड़ी चुनौती आये चाहे पहाड़ जितनी बड़ी हो उतनी ऊंची मंजिल को आसानी से पा लेते हैं।

हम मजबूत इरादों रूपी लकड़ी की लाठी के सहारे दुर्गम पहाड़ जैसी जिंदगी को आसान बनाकर विनय ,शालीन,सेवा- भाव व सद्भाव आदि गुणों से आत्मा को उज्ज्वल बनाये।हमें सुख-शांति और प्रसन्नचित रहने के लिए अंतर्मुखी होना जरूरी होता है ।

भौतिक चकाचौंध में भटकते हुए हम कभी दुःखी और कभी सुखी बनते रहेंगे ,समता रूपी धन को नहीं पा सकते,सब परिस्थितियों में सम तभी रह सकते है,जब हमारी अंतर्चेतना जागृत होती है।शांतचित और प्रसन्नचित ही सुखी हो सकता है।

विचारों के इशारों पर ही हमारे मन के आचार चलते हैं । हमारे विचार पावन, पवित्र होंगे तो जीवन भी मनभावन होगा ।इसीलिए तो कहा गया है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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