साढे 4 साल तकआईटी क्षेत्र में काम करने के पश्चात मनदीप वर्मा अपने जड़ों की ओर लौटना चाहते थे खासकर सोलन जिले में जहां उनका अपना गृह नगर था ।
मनदीप वर्मा का कहना है कि मैं अपनी नौकरी से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं था और मेरे करियर की वृद्धि भी उम्मीद के मुताबिक नहीं चल रही थी मैंने अपनी नौकरी छोड़ने का फैसला ले लिया।
मैं एक ऐसे क्षेत्र में करियर बनाना चाहता था जहां मुझे सटिस्फैक्शन मिल पाए, लेकिन मुझे बिल्कुल भी नहीं पता था कि कौन सा विकल्प कैरियर के लिए सही है ।
मुझे हमेशा कहा जाता था कि अपनी शिक्षा पूरी करने का मतलब पारंपरिक नौकरी को हासिल करना है, इस दौरान मैंने सोच विचार करने में समय बिताना शुरू कर दिया और मेरे पास मौजूद शैक्षणिक कौशल के प्रति एक अलग दृष्टिकोण रखने का फैसला मैंने लिया।
38 वर्षीय मनदीप ने तब खेती करने का फैसला किया । मनदीप वर्मा का कहना है कि मैंने अपनी पत्नी के साथ अपनी नौकरी छोड़ने और खेती करने के अपने विचारों पर चर्चा किया जो मेरे समर्थन करने के लिए एक बार में सहमत हो गई ।
गाँव में हमारे पास 4.84 एकड़ की एक पुश्तैनी जमीन थी और हमने इसे अपने उद्देश्य के लिए इस्तेमाल करने का फैसला ले लिया । लेकिन केवल मार्केटिंग में ही ज्ञान और खेती में कोई अनुभव नहीं होने के कारण मनदीप के मन में व्यर्थ की चिंताएं आ रही थी ।
इसके साथ ही साथ उनका कहना है कि सब्जी या कोई फसल किस प्रकार से उगाई जाती है इसके अलावा भूमि बंजर भी थी और खेती की गतिविधियों के लिए कभी भी इसका इस्तेमाल नहीं किया गया था।
उस भूमि पर कभी भी खेती नहीं किया गया था और मिट्टी की उर्वरता बिल्कुल भी अज्ञात थी । भूमि पर घास और अन्य जंगली वस्तुओं का ही केवल उपस्थिति थी।
मेरा मानना है कि प्रकृति को हमेशा पोषक तत्व जैसे पत्ते कार्बन पदार्थ विघटित जानवर और अन्य विरासत ही मिले होंगे । हिमालय की मिट्टी पोषक तत्वों से भरपूर होती है और मैंने खेती के लिए किसी भी रसायन का प्रयोग नहीं किया, उस पर विश्वास करने का फैसला मैंने ले लिया एवं उसी भूमि पर खेती करना शुरू कर दिया।
एक और समस्या यह भी थी कि वहां जमीन ढलान पर और बिल्कुल भी समतल नहीं थी फिर मनदीप ने जंगली वनस्पति को हटाकर मिट्टी को समतल बनाना शुरू कर दिया भूमि को खेती के लिए उपयुक्त बनाने के लिए काफी समय और प्रयास लग गया था।
मनदीप ने तब खेती के बारे में जानने के लिए इंटरनेट का उपयोग करने का फैसला ले लिया और सैकड़ों वीडियो देखें उन्होंने जैविक और प्राकृतिक खेती के तरीकों का उपयोग करके खेती करने के लिए आवश्यक विभिन्न पहलुओं के बारे में सीखना शुरू कर दिया । उन्होंने स्थानीय अधिकारियों और बागवानी विभाग में काम करने वाले विशेषज्ञों से मार्गदर्शन भी लेना शुरू कर दिया।
मनदीप का कहना है कि इन सारी चीजों को सीखने एवं इसे सही ढंग से करने के लिए मुझे कम से कम 5 महीने तक का समय लग गया था इस प्रक्रिया ने मनदीप को यह जानने में बहुत मदद की कि पड़ोसी क्षेत्रों के किसान बंदरों के खतरे से बहुत ज्यादा परेशान थे । इन सभी मुद्दों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने उगाने के लिए एक सुरक्षित फसल खोजने का फैसला ले लिया।
मनदीपने हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय के कुछ प्रोफेसरों से भी संपर्क किया लगभग 30 किलोमीटर दूर रहने वाले कुछ किसान फल की खेती कर रहे थे यह महसूस करते हुए कि यह एक संभावना भी हो सकती है।
मनदीप का कहना है कि कीवी अपने शुरुआत के दिनों में बहुत ज्यादा खट्टा हुआ करता है और यही कारण है कि कीवी बंदरों को छूने से रोकती है या एक विशिष्ट और विदेशी फल होने के लिए बाजार में एक अच्छा मूल्य भी हासिल करती है ।
मैंने एलिसिन और हेवर्ड की किस्में के 150 पौधे भी खरीदे थे और उन्हें जमीन के एक छोटे से हिस्से पर उगाना भी शुरू कर दिया था।
इसके बाद में मिट्टी में पोषक तत्व को जोड़ने के लिए जीवामृत गाय के गोबर, गोमूत्र, गुण, बेसन और अन्य कार्बन के अनुसरण करना शुरू कर दी।
उनका कहना है कि मैंने मटर गेहूं, काला चना, हरी मूंग, दाल और चना सहित सात अनाजों का मिश्रण भी समान अनुपात में पेश किया मिश्रण को रातभर भिगोया जाता है और फिर अंकुरित होने के लिए निकाल दिया जाता है ।
इन सभी अनाज से एक पेस्ट तैयार किया जाता है उसमें पानी और गोमूत्र भी मिलाया जाता है और इसे कुछ घंटों के बाद फिल्टर किया जाता है और संग्रहित किया जाता है।
इस मिश्रण का इस्तेमाल पौधों के फूल आने पर छिड़काव के रूप में किया जाता है और दूध निकलने की आवश्यकता के दौरान किया जाता है । इसका छिड़काव पौधों पर करता है ताकि खेत में फसलों पर कोई कीट हमला ना कर सके ।
मनदीप वर्मा का स्वस्तिक फार्म ( Swaastik farms ) नामक अपना वेबसाइट एवं बिज़नेस फार्म है , जिसके माध्यम से ऑर्गेनिक फ्रेश फल और सब्जियां पुरे भारत में उपलब्ध करवाते हैं। ये वेबसाइट उन्हें उत्तराखंड, चंडीगढ़, हरियाणा , पंजाब ,दिल्ली ,हैदराबाद और बेंगलुरु में ग्राहकों की जरूरतों को पूरा करने में बहुत ज्यादा मदद करती है।
लेखिका : अमरजीत कौर
यह भी पढ़ें :–
मन की बात में प्रधानमंत्री ने की तारीफ, बाराबंकी की धरती पर कर्नल ने उगाए ‘चिया सीड्स’