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व्यवहार की दो बात

व्यवहार की दो बात
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पारस्परिक सहयोग , उचित सन्मान का मानव जीवन में महत्वपूर्ण स्थान होता है । पारस्परिक स्नेह एवं सहयोग के सिद्धांत पर ही समाज टिका हुआ है | जहाँ जितना होगा परस्पर स्नेह भाव वहाँ उतना ही रहेगा हरेक के जीवन में सुरक्षा, सहयोग, आनंद का संचार क्योंकि संगठन में जो गुण होते हैं वे किसी दबाव से नहीं उनका दिल में स्वत: अवतरण होता है।

प्रकृति भी पारस्परिक सहयोग वृत्ति रखती है । सामूहिक प्रयत्नों के द्वारा ही व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए विकास एवं उन्नति कर सकते हैं, संगठन भले ही बड़ा हो या छोटा, लाभ के लिए हो अथवा गैर-लाभ वाला, सेवा प्रदान करता हो अथवा विनिर्माणकर्ता, प्रबंध सभी के लिए आवश्यक है।

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प्रबंध इसलिए आवश्यक है कि व्यक्ति सामूहिक उद्देश्यों की पूर्ति में अपना श्रेष्ठतम योगदान दे सकें। प्रबंध में पारस्परिक रूप से संबंधित वह कार्य सम्मिलित हैं जिन्हें सभी प्रबंधक करते हैं।

बड़ों का जितना सम्मान किया जाय कम है, यही मैंने अपने पूर्वजों से सीखा है और यही धर्म गुरुओं से । इंसान के सद्दविचार में वह शक्ती है जिससे जीवन में आये ऋजु स्वभाव, मधुर संभाषण , निश्छल वृत्ति, अहंकार मुक्ति , संयम-सादगी , शिष्ट व्यवहार, उच्च विचार , अनाग्रही चिंतन , बड़ों के सम्मान , छोटों की वत्सलता आदि – आदि ।

बड़ी विचित्र बात है कि गणित में १और१ दो होते है ,पर शब्दों गणित शास्त्र एक और एक को मिलाकर कई गुना कर देता है । जीवन को सुव्यवस्थित ढंग से चलाने के मुख्य घटक है मन एवं विचारों की शुद्धि क्योंकि हमारी वाणी -व्यवहार-आचरण जीवन में अनमोल सौग़ात है, अमुल्य मोती है और इससे जीवन पर सार्थक प्रभाव पड़ता है, शांत व सहज जीवन एवं मज़बूत नींव वाली महा शक्ति सी इमारत बनती हैं ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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