गरीबी एक ऐसी समस्या है जो लोगों को तोड़ देती है। कई बार लोग गरीबी के चलते अपने सपनों को छोड़ देते हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो हौसला रखते हैं और अपने आप को गरीबी से निकाल कर अपना एक मुकाम हासिल करते हैं और लोगों के लिए एक मिसाल बन जाते हैं।
बूढ़े हो, बच्चे हो या फिर जवान आइसक्रीम खाना सभी को पसंद होता है। आज के दौर में कई सारी कंपनियां आइसक्रीम के कई सारे फ्लेवर्स बेचती हैं लेकिन कई ब्रांड ऐसे हैं जो हमारे जुवान पर चढ़े होते हैं।
आज हम ऐसे ही एक आइसक्रीम निर्माता कंपनी की कहानी लेकर आए हैं जिसकी शुरुआत एक बेहद छोटे से स्टोर के रूप में मुंबई में हुई थी लेकिन आज यह देश के हर कोने में पहुंच चुकी है।
हम बात कर रहे हैं “नेचुरल’ आइसक्रीम ब्रांड की नींव रखने वाले रघुनाथन एस कामथ की। इनका जन्म कर्नाटक के एक छोटे से गांव में हुआ था।
इनके पिता पेड़ और फल बेचने का काम किया करते थे, जिससे मुश्किल से उन्हें हर महीने ₹100 की आमदनी हो पाती थी। रघुनाथन सात भाई बहन थे।
इसलिए उनकी मां अपना पेट काटकर बच्चों का किसी तरह पालन पोषण कर रही थी। इनका जन्म आभाव और संघर्षों के बीच बीता।
बहुत छोटी सी उम्र में ही इन्होंने काम करने की कोशिश की। जब यह मात्र 15 साल के थे तब उन्होंने मुंबई जाने का फैसला किया और अपने एक रिश्तेदार की मदद से एक दुकान ने में काम करना शुरू कर दिया।
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शुरू शुरू में उन्हें जुहू के 12×12 स्क्वायर फुट के कमरे में अपनी रात गुजारनी होती थी। कभी-कभी लोग ज्यादा हो जाते थे तो उन्हें खाट के नीचे भी सोना पड़ता था।
लेकिन रघुनाथन को इस बात का एहसास हो गया था कि गरीबी से निजात पाने के लिए उन्हें कुछ न कुछ होगा जैसे अपना खुद का कारोबार शुरू करना। इसी उद्देश्य से वह आगे बढ़ते रहें और अपने काम को जारी रखा।
वह अपनी खुद की शेविंग पर हमेशा ध्यान देते थे जिससे कि आसपास कारोबार की संभावनाओं की तलाश की जाए और उसे शुरू किया जा सके। क्योंकि रघुनाथन का परिवार फ़लों के कारोबार से पहले से ही जुड़ा था इसलिए उन्होंने फलों के कारोबार पर ही अपना ध्यान दिया।
इसी बीच उनका ध्यान एक दिन एक आइसक्रीम की दुकान पर गया और उन्हें आईडिया आया। उन्होंने सोचा कि यदि आइसक्रीम में फलों का स्वाद हो सकता है तब वास्तविक फलों से आइसक्रीम भी तो बनाई जा सकती है।
उन्हें शुरू में तो यह नही पता था कि यह उनका आईडिया बेहद क्रांतिकारी होने वाला है और आने वाले समय में वह उद्योगपतियों की सूची में शामिल हो जाएंगे।
उन्होंने अपने इस आइडिया पर काम करने को सोचा है और अपनी खुद की बचत से 1984 में 4 कर्मचारियों के साथ स्ट्रॉबेरी, आम और सेब जैसे फ्लेवर वाली आइसस्क्रीन की शुरुआत की।
शुरु-शुरु में लोगों ने उनकी आइसक्रीम को काफी सराहा जिससे उन्हें हौसला मिला। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक कई प्राकृतिक फलों जैसे की लीची और आम के 150 से भी ज्यादा फ्लेवर वाली आइसक्रीम फ्लेवर ब्रांड के मालिक बन गए।
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आज भारत भर में उनके 125 स्टोर है, जिसमें पांच स्टोर में सीधे उनका नियंत्रण है और बाकी शेष स्टोर पर कॉन्ट्रैक्ट के रूप में काम कर रहे हैं। आज देश के लगभग सभी राज्यों में उनकी पैठ बनी हुई है और इनकी कंपनी की टोटल वैल्यू 3000 करोड़ से भी अधिक का है।
इस कहानी से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि कोई भी शुरुआत बेहद छोटी होती है। हमें भी शुरुआत करने से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए।
यह शुरुआत एक छोटी सी दुकान के रूप में भी हो सकती है और वक्त के साथ यह करोड़ों का कारोबार बन सकता है।
इस कहानी से हमें यह प्रेरणा भी मिलती है कि यदि कठिन परिश्रम और इच्छाशक्ति के साथ किसी भी आइडिया पर काम किया जाये तब सफलता मिलकर रहती है।