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जरूरी है संभालते रहना

जरूरी है संभालते रहना
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कोई चीज हो या आपसी संबंध हो आदि उनका रखरखाव का सही से समुचित प्रबंध बराबर सार-संभाल करते रहने से ही रहता है। यदि सही से ध्यान नहीं दिया जाए तो निश्चित ही कुदरत के पास उनका नष्ट होने का प्रावधान है ।

इनमें शामिल वह सब कुछ चाहे शारीरिक स्वास्थ्य हो या धन संपदा हो । चाहे वह व्यापार या हो कोई रिश्ता हो आदि – आदि । किसी भी चीज की सही से समुचित प्रबंध बराबर सार-संभाल कामयाबी के सफर में धूप रूपी मुखिया का बड़ा महत्व होता हैं क्योंकि सही से इनको छांव मिलते ही ग़लत दिशा में कोई भी कदम रुकने लगते है ।

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इसलिए कहीं ना कही सख़्ती भी ज़रूरी है पर समझदार वही जो इसकी सही से समुचित प्रबंध बराबर सार-संभाल सही से संभाले रखता हैं।

वैसे भी कोई चीज हो या आपसी संबंध आदि सब फूलों की तरह बेहद नाज़ुक होते हैं जो जरा सी तेज हवा के झोंके से उड़ जाते हैं , बारिश की एक बूंद से भीग जाते हैं , भारी हो जाते हैं पत्थर की तरह जरा सी ठेस से दरक जाते हैं , शीशे की तरह समय के साथ अपनी सोच के क़दम को बढ़ाने से ज़माने के साथ चलने से और बस प्रेम के एहसास और जज्बात से पलते हैं यह सब जो रूह से महसूस किए जाते हैं ।

इस तरह वह कुछ भी हो ! बराबर सही से देखरेख मांगता है ताकि किसी को उसमें मीन-मेष निकालने का अवसर ही ना आए।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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