मनुष्य का स्वभाव ही है जो मिला है, उसमें सन्तुष्ट न रहकर शिकायत करते रहना, बिरले ही होते हैं सम्यकदृष्टि मनुष्य, जो मिला है , अपने कर्मों से मिला है , उसमें सन्तुष्ट होने वाले।
सर्वप्रथम तो मनुष्य जन्म का मिलना ही बहुत सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि है,9 दुर्गम तिर्यंच घाटियों को पार करने के बाद हमको ये संज्ञी मनुष्य का जन्म बहुत पुण्योदय से पाया है, उसमें हम अपने दुःख आने को कर्मोदय समझकर गीले शिकवे न कर समभाव से सन्तुलन बिठाकर और ज्यादा कर्मबन्ध गाड़ न हो ये कोशिश कर हलुकर्मी होकर अपने अध्यात्म विकास के द्वारा आत्मोत्थान करें।
हम हमारे कर्ता स्वयं है तो हमारे कर्म अनुसार निमित योग बनना भी हमारे हाथ है इसलिए साधु- साध्वी प्रायः यह फरमाते है कि सदैव सदकर्म करते रहो क्योकि कब क्या कर्म से निमित योग बन जाता है यह हमारे हाथ नहीं होता है क्योकि हम कर्म बाँधने में स्वतंत्र है भोगने में नहीं ।
मेरे जीवन का घटना प्रसंग दिवंगत शासन श्री मुनि श्री पृथ्वीराजजी स्वामी ( श्रीडुंगरगढ़ ) ने अप्रेल – मई 2016 में मुझे कहा कि प्रदीप तुझे थोकड़े मैंने याद कराए है सूत्रों का वाचन लिखना और काफी चीजें आदि – आदि धर्म की बहुत चीजे तेरे सीखी हुई हैं तो अपने जीवन को गति दे धर्म की जड़ हमेशा अच्छी होती है तू लिख प्रदीप मैं बोल रहा हूँ ।
मुनिवर ने समय देकर मेहनत कर मुझे बहुत समझाया मेरे पिछे लगकर मेरे को शुरुआत की स्तिथि पर लाए । वह मेरे को अपने सामने बोल लिखाने की शुरुआत कि तो प्रथम दिन मेरी हालत ऐसी थी मानो की बच्चा पहली बार स्कूल जा रहा हो खेर!
मैंने आया जो लिख दिया । दूसरे दिन मैं यह सोचा कि वृद्ध संत है भूल जाएँगे लेकिन मेरा यह चिन्तन गलत हुआ और दर्शन सेवा करने जाते ही मुनिवर मेरे को पूछे और मेरे से लिखाए , तीसरे दिन ऐसे हुआ मैंने लिख सोशियल मीडिया पर डाल दिया चोथे दिन मैं लिख ले गया और ह्युस्टन अमेरिका से प्रतिक्रिया आयी इसको फोटो में डालो रोज रचना को मैंने चोथे दिन मुनिवर को बताया ।
यह अमेरिका की बात को मुनिवर ने सुन सोच मेरे को वो जानते थे इसलिए बिना मेरे से पूछे उन्होंने मेरे को त्याग करवा दिया तू प्रतिदिन इसको नियमित लिख फोटो में सब जगह भेजेगा ।
मैं बोला नहीं लेकिन सुन मन में हक्का बक्का रह गया और 90 दिन तक प्रतिदिन का लेखन मेरे से मुनिवर पूछते और नियमित आदत का क्रम चालू किया ।
मुनि पारस कुमार जी से नियमित और पूछना शुरू करवा दिए कि प्रदीप लिखा नहीं लिखा देखो क्योकि उनके मन में था कि कहीं मैं भूल नहीं जाऊँ |
यह क्रम चलता गया वह मुनिवर मुझे बोले धर्म संघ में सब जगह अब अपनी यथासम्भव सेवा दे तेरे को दबाव तेरी पाँवो की बीमारी से कभी ज़िन्दगी में लेना नहीं है अपना काम करना हो जितना करते रहना लिखने का आदि – आदि वो मुझे बोले । ( क्रमश : आगे )
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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