स्वामी विवेकानंद का यह कथन कि जीवन में दिक़्क़तें झेलने का मन पक्का बना कर रखिए क्योंकि यदि जिन्दगी में दिक्कतें न आयेंगी तो निश्चित आपकी जिन्दगी अपरिपक्व ही रह जाएगी।
कभी न कभी बड़े गड्ढे में गिरने की संभावनाएं भी बन जाएंगी क्योंकि जब कभी अकस्मात दिक्कतें आ ज़ाएँगी तो सहन करने की आदत ही नहीं होगी। अत: समझ लीजिए कि जीवन में दिक्कतों से कोई दिक्कत नहीं है बल्कि वे हमें मजबूत ही बनाती हैं।
अनुभवों की कड़ी जोड़ती हैं। हमारी जिन्दगी ज़्यादा सक्षम और सबल होकर उभरती है। वह इंसान कभी सफल नहीं हो सकता जो रास्ते पर नहीं बल्कि रास्ते पर आने वाली दिक्कतों के बारे में ज्यादा सोचता है ।माना की दिक्कतें हमारी परीक्षा लेती हैं पर ये हमे तजुर्बे ज्ञान व शिक्षा आदि भी तो दे जाती हैं।
बस हमारे अंदर आतंरिक बल हो और पर्याप्त शारीरिक व मानसिक क्षमता , जीवन के प्रति सकारात्मक रवैया और लक्ष्य को पाने की मन में ललक , फिर क्या दिक्कतों से कभी दिक्कत ही नही होगी । जिसके पास विवेक है और वह दिक्कतों के आगे से हटता नहीं अपितु डटता है।
उसका डटकर मुकाबला करना ही आधी सफलता प्राप्त को कर लेना है। कहते है कि एक नाविक की परीक्षा तभी है जब तूफ़ान में भी वो कश्ती किनारे लगा ले , व्यक्ति की परीक्षा तभी है जब संकट की घड़ियों को भी वो धीरता से खुद को पार लगा दे । मुश्किलों को व्यवधान न मानें क्योंकि वो ही तो हमारे आने वाली हर चुनौती का आह्वान है ।
संघर्ष की हर घड़ी हमें कुछ सिखाती है , दिक़्क़तों को पार लगाने की कला बताती है , काँटों में चलना सिखाती है , हमें तराशती है , अनुभवों व आत्मविश्वास आदि से हमें भर जाती है ।बस फिर क्या है विवेक और धैर्य का समागम प्रतिकूल को भी हमेशा अनुकूल बनायेगा ।
इसलिये कल पर न रखें, कार्य करते जायें जिससे हर कदम पर सफलता का फूल खिलेगा । बस कुछ करना है इस अटल सिद्धान्त पर रुकें न कभी कदम , फिर हम बढ़ते रहेंगे । बस दिमाग को हम संतुलित रखें, सोच सकारात्मक रहे। अपनी योग्यता पर पूरा यकीन रहे ताकि असंभव भी संभव बन जाये।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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