अपने से बड़ो का आदर सम्मान का सूचक प्रणाम है । प्रणाम सिर्फ बोलने करने मात्र से नहीं है बल्कि यह भावनाओं का स्पंदन है जिससे अहं , ईर्ष्या आदि का पतन होता हैं । प्रणाम नत–मस्तक होकर अभिवादन, नमस्कार करने का ढंग हैं जो झुकना, नत होना हैं ।
प्रणाम का सीधा संबंध प्रणत शब्द से है जिसका अर्थ होता है विनीत होना, नम्र होना और किसी के सामने सिर झुकाना। प्राचीन काल से हमारे यहाँ प्रणाम की परंपरा रही है।
जब कोई व्यक्ति अपने से बड़ों के पास जाता है तो वह प्रणाम करता है। प्राचीन के समय गुरुकुलों में दंडवत प्रणाम का विधान था जिसका अर्थ है बड़ों के पैर के आगे लेट जाना। इसका उद्देश्य यह था कि गुरु के पैरों के अंगूठे से जो ऊर्जा प्रवाह हो रहा है उसे अपने मस्तक पर धारण करना।
इसी ऊर्जा के प्रभाव से शिष्य के जीवन में आगे परिवर्तन होने लगता है। इसके अतिरिक्त हाथ उठाकर भी आशीर्वाद देने का विधान है। इस मुद्रा का भी वही प्रभाव होता है कि हाथ की उंगलियों से निकला ऊर्जा प्रवाह शिष्य के मस्तिष्क में प्रवेश करें।
प्रणाम भारतीय संस्कृति का एक शालीन आयाम है। छोटा सा तीन अक्षर का प्रणाम जिसमें महान अर्थ समाया है । प्रणाम तो हृदय से निकलने वाली भावनाओ का एक आमंत्रण है जो केवल किसी की आंखों को देखकर बताया जा सकता है ।
हमारे यहां प्रणाम हृदय से किया जाता है और जब उस प्रणाम को आशीर्वाद मिलता है तो उसका प्रत्यक्ष फल भी मिलता है । इस तरह प्रणाम सीधी तरह से बड़ों के समक्ष आत्मनिवेदन है जो श्रद्धापूर्वक प्रणाम की मुद्रा में होता हैं तभी बड़ों के हृदय से निकला एक-एक शब्द उसके जीवन में परिवर्तन ला सकता है।
प्रणाम विनय का जनक है और अहंकार का नाशक है । कुल मिलाकर प्रणाम हमारी गौरवशाली संस्कृति जो कभी न भुलाई जाए की यह शालीन वृत्ति है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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