हमारे द्वारा समझ पकड़ने के बाद की जिन्दगी के कुछ कड़वे – मीठे अनुभव सदा याद रहते हैं जो हमारे आगे की जिंदगी के
सच्चे मार्गदर्शक से होते हैं। हम प्रायः अपने जीवन में देखते है कि हर वर्ष के अंत में एक वर्ष बीत जाता है।
वह दूसरे ही दिन बारह माह का नव वर्ष शुरू हो जाता है। लोग इन दोनों ही दिन हर्षोल्लास मनाते हैं। ये दोनों ही दिन खास माने ही जाते हैं पर हम विगत बारह मास की कालावधि का पूरा लेखाजोखा लें, वह उसका एक अनुभव अनोखा लें।
हमने उसमें क्या-क्या नूतन किया , हमने उसे कैसे बिताया । हमने जिसका स्वप्न संजोया क्या-क्या नहीं कर पाए थे आदि – आदि उसका हम सही से विश्लेषण करें कि यह किस कारण नहीं हो पाया था।
आज व्यक्ति का जीवन इतना जटिल हो गया है कि उसका तनाव के कारण खुशी के दो पल भी अपने लिए निकालना कठिन हो चुका है। इसका एक कारण यह भी है कि हमने खुशी, सुरक्षा, आश्रय आदि सबकी अपेक्षा दूसरों से या बाह्य जगत से कर रखी है, अतः अपेक्षाओं से मुक्त होने के लिए आवश्यक है कि हम अपने निर्णय का उत्तरदायित्व समझदारी से लेना होगा, अहंकार अपेक्षाओं को जन्म देता है।
हम जिस भाव को लेकर जीते हैं यदि वह पूरा नहीं होता तो मन उदास हो जाता है। हमको जो करना है, स्वयं करना है। हम इसके लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हो जाएं, किसी अन्य के सहयोग की अपेक्षा न करें। हम किसी से अपने समान किसी कार्य के प्रति समर्पण की अपेक्षा नहीं कर सकते है।
हम अपने को कमजोर न समझें, अपने आप को सही से पहचानें। हमारे जीवन के किसी भी लक्ष्य को हासिल न कर पाना सदा के लिए हार जाना नहीं है बल्कि यह तो सफलता की नई आधारशिला है । हमारे जीवन में अभी सम्भावनाएँ शेष हैं, वह प्रयत्न भी अवशेष हैं।
वह जीवन में हार के अनुभव ही तो आगे के प्रयत्नों के लिए विशेष हैं। हम यह समझ लें कि खुशनसीब हैं वे,जो गिर-गिर कर, संघर्षों की राह पार कर, उपलब्धियाँ हासिल करते हैं , वे ही अपने जीवन को गौरवान्वित एवं सुवासित करते हैं। जीवन में हार से हार मान कर बैठ जाने वाले मानसिक दुर्बलता के प्रतीक हैं।
( क्रमशः आगे)
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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