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बिहार के एक शख्स ने 8 सालों में विकसित की है एक नई तकनीक, अब राख से भी बनाया जा सकता है कोयला

Rameshwar kushwaha coal
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भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया में प्राकृतिक संसाधन जैसे कोयला का खनन बहुत तेजी से बढ़ रहा है, और यही कारण है कि पृथ्वी पर खनिज तत्वों की संख्या कम होती जा रही है और खनिज तत्व खत्म होने की कगार पर पहुंच गए हैं।

इस दौरान भारत के एक नागरिक ने राख से कोयले तैयार करने का चमत्कार कर दिखाया है, इस दौरान भारत में एक नई औद्योगिक क्रांति आने की स्थितियां बन रही है।

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आप सभी ने कोयले के इस्तेमाल के बाद बची हुई राख के बारे में तो सुना ही होगा शायद देखा भी होगा परंतु आपने इस विषय में तो कभी नहीं सुना होगा कि राख से कोयला तैयार हो सकता है ।

परंतु आज यह बात सत्य हो गई है क्योंकि भारत के बिहार के रहने वाले एक शख्स ने राख से कोयला तैयार करने की तकनीक को ढूंढ निकाला है। आपको यह बात जानकर काफी हैरानी होने वाली है क्योंकि अब भारत में राख से भी कोयला तैयार किया जाएगा।

भारत में कोयले  उत्पादन कि इस नई तकनीक का पूरा श्रेय बिहार के रहने वाले रामेश्वर कुशवाहा को जाता है। जानकारी के लिए आप सभी को बता दें कि  रामेश्वर कुशवाहा मूल रूप से पश्चिमी चंपारण के कुंडिलपुर पंचायत के मंझरिया गांव के रहने वाले हैं।

आज रामेश्वर कुशवाहा ने अपने लगातार प्रयासों के कारण न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में इतिहास रच दिया है।

इसके साथ ही साथ बिहार के रहने वाले रामेश्वर कुशवाहा द्वारा तैयार की गई राख से कोयला बनाने की तकनीक पर सरकारी मुहर भी लग गई है और राख से कोयला तैयार करने के लिए सरकार ने रामेश्वर कुशवाहा के साथ एग्रीमेंट भी तैयार कर लिया है।

छोटे व्यापारियों  को मिलेंगे कई रास्ते

हम जानकारी के लिए आप सभी को बता दें कि बिहार के मंझरिया गांव के रहने वाले रामेश्वर कुशवाहा कुंडिलपुर  पैक्स के अध्यक्ष भी रह चुके है और इस दौरान उन्होंने समाज सेवा से जुड़े हुए कई कार्यो को भी किया है।

इसके साथ-साथ उन्होंने आज एक बार फिर से राख से कोयले बनाने की एक नई तकनीक को लाकर औद्योगिक क्षेत्र में एक क्रांति ला दी है।

रामेश्वर  के इन प्रयासों के कारण पश्चिम चंपारण में रहने वाले कई लोग जो अपने घरों में अभी भी कोयले का इस्तेमाल करते हैं अगर राख से कोयला तैयार हो गया तो इसके बाद कोयला इस्तेमाल करने वाले लोगों को काफी कम खर्चा करना पड़ेगा, अर्थात इस प्रकार से कोयले के निर्माण के कारण बिजली कारखाने और लघु उद्योगों की स्थापना भी काफी अधिक तेजी से बढ़ सकती है।

सरकार ने दिया है मदद का आश्वासन

जानकारियों से पता चला है कि रामेश्वर कुशवाहा पिछले कई सालों से लगातार कोयले निर्माण करने की नई तकनीक को खोजने में लगे हुए थे वर्ष 2012 में इन्होंने पहला प्रयास किया था उसके बाद लगातार वह प्रयासों में लगे थे ।

कहते हैं ना कि सफलता को प्राप्त करने के लिए अनेक प्रयासों का करना आवश्यक है और यही कुछ रामेश्वर कुशवाहा के साथ हुआ लगातार निरंतर प्रयास करने के कारण रामेश्वर सफलता के मुकाम को हासिल कर ही लिया। इसके साथ ही साथ इनकी नई तकनीक को सरकार ने पूरी तरह से स्वीकारा है और सभी प्रकार की मदद देने का आश्वासन भी दिया है।

खेतों में होंगे उपयोगी

जानकारी के लिए आप सभी को बता देना कि रामेश्वर कुशवाहा अपनी इस नई तकनीक के विषय में बताते हैं कि इस तकनीक में उपयोग में लाए जाने वाला चारकोल ब्रिक्स को धान के भूसे ,पराली, गन्ने के सूखे पत्ते को मिलाकर तैयार किया जाता है।

इसकी लागत भी काफी कम है, इस दौरान वह बताते हैं कि इसे जलाने पर प्रदूषण भी काफी कम होता है, इसके बाद अगर कोयले का इस्तेमाल करने के बाद बची हुई राख का इस्तेमाल खेतों में किया जाए तो यह खाद का काम करेगी।

आज बिहार के मंझरिया गांव के रहने वाले रामेश्वर कुशवाहा अपने निरंतर प्रयासों के कारण कोयले को तैयार करने की एक नई तकनीक को सामने लेकर आए हैं और ना केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में औद्योगिक क्षेत्र में एक क्रांति के रूप में प्रकट हुए हैं।

इसके साथ ही  साथ भारत सरकार ने रामेश्वर कुशवाहै की इस नई तकनीक को पूरी तरह से जांच पड़ताल करने के बाद स्वीकृति भी दे दी है, इतना ही नहीं अगर इस तकनीक का उपयोग करके कोयले बाजार में आने शुरू हो गए तो कोयले का दाम कुछ कम हो जाएगा और कोयले इस्तेमाल करने वाले लोगों को काफी राहत मिलेगी।

लेखिका : अमरजीत कौर

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