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वास्तविक बनाम काल्पनिक भय

वास्तविक बनाम काल्पनिक भय
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हम वास्तविक घटना और काल्पनिक घटना दोनों को ही जानते हैं । यह एक-दूसरे से भिन्न, भिन्न ही क्या एकदम अभिन्न हैं । एक तो जो घटित हो चुकी हैं अच्छी हुई या बुरी, ठीक हुई या गलत।

जैसी भी हुई उसे तो हमको स्वीकृत करना ही होगा और गले लगना होगा ताकि और कुछ करने का हमारे मन में विकृत ना हो । दूसरी बात जो अभी तक घटित नहीं हुई है उसके बारे में सोचने लगना कि कही ऐसा तो ना हो जाए, वैसा तो ना हो जाए, यह होगा तो क्या होगा आदि – आदि यह काल्पनिक आशंका से आशंकित सोच एकदम गलत विकृत हैं ।

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मनुष्य का स्वभाव होता है वह काल्पनिक शंका व भय से मुक्त नहीं हो पाता है। सबके भय के अनेक कारण हो सकते हैं पर मुख्य रूप से आत्मविश्वास की कमी, नकारात्मक सोच , अंधविश्वास और निर्मुल आशंकाएं व भय आदि है।

उसको सकारात्मक सोच , संतोष, आत्मविश्वास व आत्म बल आदि से ही दूर कर सकते हैं । अतीत की दुखद स्मृतियों को भूलने में ही भलाई है क्योंकि गया समय कभी भी वापस नहीं आता हां उससे सीख अवश्य ले सकते हैं और भविष्य की चिंता छोड़ना जरूरी है ,क्योंकि यहां अगले पल क्या होने वाला है, पता नहीं।

चाहे कितने भी ख्वाब सजा ले जो होना होगा , वही होगा इसलिए अच्छा है कि वर्तमान में हंसी खुशी के पल बिता लें। हमें सकारात्मक सोच से सदैव आगे बढ़ना है ।

गलती से कोई बीमारी आ ही जाए तो यह सोचना है कि कर्म के उदय से यह आई है , चली भी जाएगी।संतोष, आत्मसंयम व दृढ़ता आदि से उसका सामना करना है ।जो होगा सही होगा, अच्छा होगा यही भाव सदैव रखना हैं ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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